SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १.१७ ( आ. नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ति के 'अनागत- प्रकाश' के आधार पर विद्वदूवर नेमिचंद्र कृत और ब्र• ज्ञानचंदजी महाराज संपादित 'सूर्य प्रकाश' ) - " तिस समय श्वेताम्बर आम्नाय विशेष होय रही थी । दिगम्बर आम्नाय में कुछ कुछ विक्षेप पड गया था ।" २ “४७० की सालमें वारानगरमें श्रीकुंदकुंद मुनिराज थे ।” "वे विदेह क्षेत्र में जाय पहुंचे" " ग्रन्थोके नाम ये हैं-मतांतर निर्णय ८४०००, सर्व शास्त्र ८२००० कर्मप्रकाश ७२०००, न्यायप्रकाश ६२०००, ऐसे चार ग्रन्थ लेकर भगवानसुं आज्ञा मागी" । "लाखो प्राणियोंने श्वेताम्बर धर्म छुड़ाय दिगम्बर किये । धर्ममार्ग प्रवर्त्ताया" ॥ “कुन्कुन्दस्वामीके संघ में ५९४ मुनियोकी संख्या हो गई” । माने - आचार्य कुन्दकुन्द ने धर्ममार्ग बताया । ( एलक पन्नालालजी दिगम्बर जैन सरस्वती भूवन- बम्बईका गुटका, सूर्यप्रकाश श्लो० १५२ की फूटनोट पृ० ४१ से ४७ ) ३ तेन मण्डपदुर्गे श्रीवसन्तकीर्त्ति स्वामिना चर्यादिवेलायां तट्टी सादरादिकेन शरीरमाच्छाद्य चर्यादिकं कृत्वा पुनस्तन्मुञ्चन्तीत्युपदेशः कृतः । इस समयसे दिगम्बर मुनिधर्मका विच्छेद हुआ और : भट्टारकों का प्रारम्भ हुआ । ( दर्शनप्राभृत गा० २४ की श्रुतसागरी टीका पृ० २१ ) बाद में आचार्य शान्तिसागरसूरिजीने दिगम्बर मुनि मार्गका पुनर्विधान किया है । ४ तेरहपंथी मानते हैं कि पञ्चमकाले किल मुनयो न वर्तन्ते । इस पांचवे आरेमें दिगम्बर मुनि है नहीं । ( दर्शनप्राभृत गा० २ की श्रुतसागरी टीका ) जिनवाणी का विच्छेद होने पर चारो संघ की कोई किंमत नहीं है एवं मुनिधर्म का विच्छेद होने पर भी और२ संघ की कोई किंमत नहीं है। वास्तवमें इसीका नाम ही 'धर्मविच्छेद'
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy