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१०३ त्वक् तिक्तकटुका स्निग्धा, मातुलुंगस्य वातजित् ॥ बृहणं मधुरं मांसं, वातपित्तहरं गुरु ॥
बीजौरा का मांस (गुदा) पुष्टिकारक मधुर वातहर और पित्तहर है, वगेरह।
__ -(वाग्भट्ट) बीजपुरो मातुलुंगो रुचकः फलपूरकः ॥ बीजपुरफलं स्वादु, रसे ऽम्लं दीपनं लघु ॥१३१॥ रक्तपित्तहरं कण्ठ- जीव्हा हृदय शोधनम् ॥ श्वास कासा ऽरुचिहरं हृद्यं तृष्णाहरं स्मृतम् ॥१३२॥ बीजपुरो ऽपरः प्रोक्तो मधुरो मधुकर्कटी ॥ मधुकर्कटिका खाद्वी रोचनी शीतला गुरुः ॥१३३॥ रक्तपित्त क्षय श्वास कास हिक्का भ्रमा पहा ॥१३४॥
बीजौरा-रक्तपित्तदोषका नाशक कण्ठ जीभ व हृदयका शोधक श्वास कास व अरुचिका विनाशक और तृष्णाहर है। मधुर बीजौरा-शीतल रक्तपित्तनाशक है, वगेरह।।
(भावप्रकाश निघण्टु फलवर्ग) (३) स्मरणमें रहे कि-मुरघाका मांस उष्णवीर्य है। मानेदाह वगेरहको बढानेवाला है।
___(सुश्रुत संहिता) __ अब भ० महावीर स्वामी के दाह वगेरह रोग की अपेक्षा शौचा जाय तो निर्विवाद सिद्ध है कि-यहां मुरघा सर्वथा प्रतिकूल है चउपत्तिया भाजी और बीजौरा ही उपकारक है।
नतीजा यह है कि-रेवती श्राविकाके घरमें जो 'कुक्कुड़मांसक' था वह 'बीजोरा पाक' था।
भगवतीसूत्र के प्राचीन चूर्णीकार और टीकाकारोने उक्त शब्द से बीजौरापाक ही लीया है। जैसा कि-- ___ मार्जारो वायुविशेषस्तदुपशमनाय कृतम्-संस्कृतम्-मार्जारकतम् ॥ अपरे त्वाहुः-मार्जारो बिडालिकाभिधानो वनस्पतिविशेषः