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मार्जार-मार्जारः स्यात् खट्वांश-बिडालयोः । खट्टी चीज.
(क० स० श्री हेमचन्द्रसूरि कृत हैमी अनेकार्थ-नाममाला)
(वैद्यक शब्द-सिन्धु, जैनधर्म प्र० ५४/१२/ पृ. ४२७ ) मार्जार-इगुद्यां तापस तरु मार्जार । इंदुगीका दरखत, जिस के तेल से बीजौरा हिमज वगेरह भुंजे जाते है।
( हैमीनिघंटु संग्रह) मार्जार-बिडाल । मार्जारी, मार्जारिका, मार्जारांधमुख्या-कस्तुरी मार्जार गंधा, मार्जारगन्धिका,-एक किस्मका हिरन
(श्री जैन सत्यप्रकाश व० ४ अं. ७ क्र. ४३ ) ये शब्द और इनके अर्थ "मार्जार" शब्द वनस्पति वर्ग में कितना व्यापक है इसका ठीक परिचय देते हैं । ___ अब भगवान् महावीर स्वामी के दाहरोग की अपेक्षा शोचा जाय तो मानना पडेगा कि-यहां बिडाल का तो कोई काम नहीं है, किन्तु मार्जार वनस्पति और खट्वांश ही उपकारक है। अतः उक्त रोग पर इनकी भावनावाला औषध ही दीया गया था।
बात भी ठीक है कि-दाह रोगमें खटाई वगेरह उपकारक है।
उक्त रोग में मार्जार नामका वायु भी सामील था, उसकी शान्ति के लीये जो संस्कार दिया जाय वह भी "मार्जारकृत" माना जाता है। इसी तरह यहां माजारका अर्थ "वायु" भी है। भगवती सूत्र के प्राचीन टीकाकारोने उक्त शब्द का वायु और वनस्पति अर्थ ही बताया है । जैसा कि___ मार्जारो वायुविशेषः तदुपशमाय कृतम्-संस्कृत-मार्जार-कृतम् ।। अपरे त्वा!-मार्जारो बिडालिकाभिधानो वनस्पतिविशेषः तेन कृतं भावितं यद् तत् ।
( आ. श्री अभयदेवसूरि कृत भग० टीका पत्र-)
( आ० श्रीदानशेखरसूरि कृत भग० टीका पत्र-) माने-मार्जारवायुको दबाने के लीये जो औषधं संस्कार दिया जाय वह "मार्जारकृत" माना जाता है । और मार्जार माने बिडालीको नामक वनस्पति से जो संस्कारित किया वह भी "मारिकृत" माना जाता है।