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ताए कामं पकरेजा जेरहपसु उववजंति, तंजहा-महारंभयाप महापरिग्गहयाए पंचिदियवहेणं कुणिमाहारेणं।
(श्री उववाइ सूत्र ) ( ) भुंजमाणे सुरं मंसं, परिवुडे परंदमे ॥ ॥
अयकक्करभोई य, तुंदिल्ले चियलोहिए । आउयं नरए कंखे, जहां एसं व एलए ॥७॥ .
(उत्तराध्ययनसूत्र अ० ७ गा० ७ ) हिंसे बाले मुसावाई, माईल्ले पिसुणे सढे । भुंजमाणे सुरं मंसं, सेयमेयंति मन्नई ॥९॥
(उत्तराध्ययनसूत्र अ० ५ गा. ९) तुहं पियाई मंसाई, खंडाई सोल्लगाणि य । खाईओ विसमंसाई, अग्गिवण्णइ ऽणेगसो ॥६७॥
(उत्तराध्ययनसूत्र अ० १९ गा० ६७ ) अमज्जमंसासि अमच्छरीआ, अभिक्खणं निविगई गया अ। अभिक्खणं काउसग्गकारी, सज्झायजोगे पयओ हविजा ॥
(श्रीदशवकालिकसूत्र चू. २ गा• ७) ( ) भेसज्जं पियमंसं देई, अणुमन्नई जो जस्स ।
सो तस्स मल्ललग्गो, वच्चइ नरयं ण संदेहो ॥ ॥ .. ( ) दुग्गंधं बीभत्थं इन्दियमलसंभवं असुइयं च ।।
खइएण नरयपडणं विवजणिज्जं अओ मंसं ॥ ॥ ( ) सद्यः संमूच्छिता नन्त-जन्तु संतान दूषितम् ।
नरकाध्वनि पाथेयं, कोऽश्नीयात् पिशितं सुधीः ?॥ ॥ आमासु अ पक्कासु अ विपच्चमाणासु मंसपेसीसु। सययं चिय उववाओ भणिओ उ निगोयजोवाणं ॥
(योगशास्त्र, प्रकाश ३ श्लो• मूल व टीका ) इत्यादि पाठो से भगवान महावीर स्वामी के आदर्श रूप अहिंसक जीवन का और अहिंसा के उपदेश का पुरा परिचय मिल जाता है।
.. ऐसे अहिंसा के प्रजापति को मांसाहारी मानना-कहना या लीखना, वह मन का जीभका और कलमका ही दोष है।