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________________ ८२ अर्थ होते थे, उनके बाद आर्य रक्षितसूरि से जिनागमका पृथक्त्व अनुयोग हुआ, माने-धर्मकथा या चरणकरण ऐसा एकैक ही अर्थ रहा । आवश्यक नियुक्ति गा० ७६२ - ७६३ में भी यही सूचन है । तात्पर्य यह है कि - एकैक अनुयोगवाला अर्थ हो शेष रहने के कारण किसी २ स्थानमें अर्थभ्रम दीख पडे, तो वह भी संभावित है । इस अर्थभ्रमको दूर करनेके लीये अपनेको उस कालकी अर्थशैली तक पहुंच जाना चाहिये और ग्रन्थस्रष्टा के असली आशय को प्राप्त करना चाहिये । इस हालत में "कवोय" वगेरह का सहसा प्रचलित सादा एवं ऐकान्तिक अर्थ कर दीया जाय तो उन ग्रन्थस्रष्टा व साहित्य से द्रोह किया ही माना जायगा । (२) प्राकृत और संस्कृत भाषा में वनस्पतियोंके कई ऐसे नाम हैं कि जो आम तोरसे विभिन्न प्राणिओंके भी परिचायक हैं । जैसा कि - बिल्ली ( गा० १९ ) रावण (२१) गयमारिणी (२२) पंचगुलि (२६) गोवाली (२९) बिल्ली (३७) मंडुक्की (३८) लोहिणी, अस्सकण्णि, सीहकन्नी सिंउढि मुसुंढी (४३) विराली : (४४) खंडी (४६) भंगी (४७) ( पन्नवणा सूत्र पद १ सूत्र - २३, २४) अस्सकण्णी, सीहकण्णी, सीउंढी, भूसंढी । ( जीवाभिगम सूत्र प्रति ० १ सू० २१ पृ० १७ ) रावण- तंदुकफल, कच्छप- नंदित्रीणि बिम्बी-कंडूरीसाग, (जै० स० व० ४ अं० ७) ऐरावण - लकूचफल, मंडुकी - (गु० ) कोली, पतंग - (गु० ) महुडा, तापसप्रिया - अंगूर द्राख, दरखत, गोजिह्वा - गोभी, मांसल - तरबूज, चतुष्पदी - भींडा | मार्जारि - कस्तूरी मृगनाभि- मुश्क, हस्ति तगर ( पृ० २८), अंडा-आंबला (पृ० १०६), मर्कटी वानरी - काच ( ३४३) वनशूकरी - मुंडी (४११) कुकडवेल - गुजराती औषधि (४५६) लालमुर्गा - हीन्दी औषधि (५०१) चतुष्पद-भींडी (८८९) मांसफल - तरबूज ( पृ०९०३) ( शालिग्राम निघंटु भूषण - ६ ) "
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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