________________
आवे वह भी अनिवार्य है। तीर्थंकर भगवान् आहार निहार करते हैं जैसे छींक भी करे।
दिगम्बर-श्वेताम्बर मानते हैं कि-गोशालाने केवली तीर्थकर भगवान् महावीर स्वामी पर तेजोलेश्या फेंकी थी और उपसर्ग किया था, इस से भगवान् को छै महिने नक खूनका दर्द रहा था।
जैन-वे इस को आश्चर्य घटनारूप ही मानते हैं।
दिगम्बर-भगवान् महावीर स्वामीने उस दर्द के लीये औषध के रूपमें जो कुछ लिया था, उसके लीये बड़ा मतभेद है। ___ उसका वर्णन श्री भगवती सूत्र के १५ वे शतक में है जिसका सार इस प्रकार है
भगवान महावीर स्वामी मेंढिक ग्राम के शालकोष्ठ उद्यान में समोसरे। उस समय भगवान् के शरीरमें तेजोलेश्या की उष्मासे उबले हुए पित्तज्वर का जोर था, खून के दस्त हो रहे थे, रोग काफी बढ़ गया था। इसीसे अन्यदर्शनी कहते थे किभगवान् महावीर का छै मास में छद्मस्थ दशामें ही मरण हो जायगा। उस समय भगवान के अनन्य रागी 'सीह' नामक अण. गार मालुकावनमें तप तपते थे, उसने इस लोकोक्ति का पत्ता लगने से और 'अन्यदर्शनीओं की यह जूठ वात भी सच्ची हो जायगी' इस ख्याल से दुःखपूर्ण करुण रुदन किया, भगवान् महावीरने उस समय सीह मुनिको बुलाकर कहा कि-हे सिंह ? तू दुःख मत कर ! मेरी मृत्यु छै मास में नहीं होगी किन्तु मैं १६ वर्ष पर्यन्त तीर्थकर दशामें जीवन्त रहूंगा।
फिर भी तुझे इस व्याधि से दुःख होता है तो एक काम कर, कि-इस मेढिक ग्राम में रेवती नामक गाथा पत्नी है, उसके वहां जा। उसने मेरे निमित्त दो कवोय शरीर तैयार कर रक्खे हैं उनको मत लाना, किन्तु उसके वहां मार्जार कृत कुक्कड़ मंसए है, उनको ले आना । सीह मुनिजी भगवान् की इस माज्ञासे आनन्दित होता हुआ रेवतीके वहां गया, और उस भौषध को ले आया।