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________________ ७७ काल को ज्ञानसे देखकर यह अभिग्रह किया था । जनता इस से मातृभक्ति का पाठ शीख सकती है । यही कारण है कि-लोकोतर पुरुष का चरित्र लोकोत्तर ही माना जाता है । कइ तीन ज्ञानवाले भगवान् ऋषभदेव का गौचरी निमित्त महिने तक भ्रमण करना यह भी इसी ही कोटीका प्रसंग है । महाभारत में अभिमन्यु के चक्रव्यूह ज्ञानका वर्णन है । इत्यादि प्रमाणो से तय पाया जाता है कि गर्भ में कोसी साधारण जीव को भी अधिक ज्ञानविकास हो जाता है । जब लोकोत्तर पुरुष के लीये तो पूछना ही क्या ? दिगम्बर - श्वेताम्बर मानते हैं कि- भगवान् महावीर स्वामीने जन्माभिषेक के समय इन्द्र के संशय को दूर करने के लीये मेरुपर्वतको अंगुठासे दबाया और कंपायमान किया। मगर यह बात संभवित नही है अतः दिगम्बर विद्वान ऐसा मानते नहीं है । जैन - तीर्थकरो के कल्याणक उत्सवमें इन्द्रका शावत इन्द्रासन भी कंपायमान होता है तो फिर तीर्थकर की ही प्रवृतसे मेरुपर्वत चलायमान हो तो उसमें आश्चर्य घटना क्या है ? दिगम्बर मान्य शास्त्र में भी मेरुकंपन का आम स्वीकार किया गया है । इतना ही नहीं, किन्तु “महावीर” नाम प्राप्त करनेका कारण भी वही माना गया है । देखिये पाठ (१) पादाङ्गुष्ठेन यो मेरु- मनायासेन कम्पयन् । लेभे नाम महावीर, इति नाकालयाधिपात् ॥ ू ( आ• रविषेण पद्मपुराण पर्व २, लो. ७६ ) (२) रावणने भी बालि मुनिसे वैर विचार कर कैलास पर्वत को उठाया था । उस समय श्री बालि मुनिने वहां के जिनबिंब तथा जिनमन्दीरों की रक्षा के लिये अपने पैरका अंगुठा दबाकर कैलास को स्थीर रखना चाहा था उस समय रावण कैलास के नीचे दब गया था, इत्यादि वर्णन पद्मपुराण में लीखा है । फिर भला भ० श्री महावीर स्वामी के द्वारा मेरुपर्वत के कम्पित होने में क्या संदेह है ? (पं, चम्पालालजी कृत चर्चा सांगर, चर्चा २ पृ. ६)
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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