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ज्ञान होने के बाद सबसे पहिले मरुदेवा माता हाथी के कंधे से केवलज्ञान पाकर मोक्षमें गई ! दिगम्बर ऐसा मानते नहीं है।
जैन-दिगम्बर समाज मरुदेवा की मुक्ति की एकान्त मना करता है। उसका यही कारण है कि वह स्त्रीमुक्ति की एकान्त मना करता है मगर दिगम्बर शास्त्रोसे भी स्त्रीमुक्ति सिद्ध है, जो पहिले के प्रकरणो में सप्रमाण लीख दिया है।
दिगम्बर शास्त्र ५२५ धनुष्य वालेको मोक्ष मानते हैं (राज. पृ० ३६६ श्लो० ५५१ )और स्त्रीमोक्ष भी मानते हैं। इस हिसाबसे मरुदेवा माता का मोक्ष भी घटता है।
शेष रही गजासन की बात।
जैसा दिगम्बर शास्त्रमें मूछी नहीं होनेके कारण ही " त्रयः पाण्डवाः साभरणा मोक्षं गताः" माना गया है वैसे ही यहां मूर्छा नहीं होने के कारण ही गजसान से मोक्ष माना गया है।
दिगम्बर शास्त्र दखत के अग्रभागसे भी सिद्धि बताते हैं (नंदी० ३१) वैसे ही यहां गजसान से सिद्धि समज लेनी चाहिये।
भूलना नहीं चाहिये कि केवलज्ञान या मोक्ष के लिये आसन या मुद्रा की कोई एकान्त मर्यादा है नहीं।
दिगम्बर-२४ तीर्थकरो में श्रीवासुपूज्यजी, श्री मल्लिनाथजी, श्री नेमिनाथजी, श्रीपार्श्वनाथजी और श्रीमहावीर स्वामी ये ५ आजीवन "कुमार" माने "ब्रह्मचारी" थे। मगर श्वेताम्बर उन पांचो को "कुमार" माने "राजकुमार" युवराज मानते हैं और भ० मल्लिनाथ व भ० नेमनाथ को ही ब्रह्मचारी मानते हैं।
जैन-यहां कुमार शब्द के अर्थमें ही मतभेद है अतः पहिले “कुमार" शब्द की जांच कर लेनी चाहिये।
दिगम्बर-साधारणतया "कुमार" शब्द के अर्थ ये हैं(१) युवराजः कुमारो भतदारकः।
(अभिधानचिन्तामणि कान्ड २ श्लोक १४६) (२) युवराजस्तु कुमारो भत्दारकः ।
(अमरकोष वर्ग • श्लोक १२)