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भगवान ऋषभदेवका ब्याह उसी प्रकार का था। दिगम्बर-आदिपुराण पर्व १६ के कथनानुसार "भगवान ऋषभदेवने २० लाख पूर्व की उम्र होने के बाद भोगभूमिकी मर्यादाको उठाकर कर्मभूमि की मर्यादा स्थापित की" यह ठीक बात है, किन्तु उनका ब्याह तो कच्छ-महाकच्छ की बहिन यश. स्वती और सुनन्दा से हुआ है। श्वेताम्बर मानते हैं कि उनका ब्याह अपनी सहजात सुमंगला और दूसरे अकाल मृत युगलिक की बहिन सुनन्दा से हुआ है वह बात ठीक नहीं है। सुमंगला से ब्याह मानना, यह तो सर्वथा विचारणीय समस्या है।
जैन-भगवान ऋषभदेवका ब्याह माता-पिताकी इच्छानुसार हुआ है। युगलिक माता पिता अपना पुत्रका सम्बन्ध युगलिक रीतिसे ही मनावे यह सर्वथा संभवित है।
ऋषभदेव और सुमंगला के ब्याह के उल्लेख भी अतिप्राचीन है उस कर्णाटकी या ब्राह्मणी सभ्यता के पूर्वके हैं, इस मान्यता में श्वेताम्बर-दिगम्बर के वास्तविक भेद वालो भिन्नता भी नहीं है और यह भी प्रमाण नहीं मिलता है कि भगवानने २० लाख पूर्वके पहिले भोगभूमिकी मर्यादाओं का उल्लंघन किया था । आदिनाथ पुराणका उक्त उल्लेख साफ २ बताता है कि भगवान् ऋषभदेव का ब्याह हुआ उस समय तक, भोगभूमि की मर्यादाएं ज्यों कि त्यों प्रचलित थी। नाभिराजाने भगवान के साथ सुन न्दाका भी ब्याह कर दीया था वह भी मर्यादा को तोडनेके लिये नहीं किन्तु लाचारी से। हां भगवानने जबसे कर्मभूमि की स्थिति स्थापित की तबसे सब वातो में कुछ न कुछ परावर्तन होने लगा। अब तक पुत्र और पुत्रीका एक ही साथ जन्म होता था उसमें न तो दो पुत्र होते थे, ओर न दो कन्याएं होती थी, एकपुत्र और एक कन्या ही होते थे, भगवान् की सन्तान में वह क्रम बदल गया। भगवान् को १०० पुत्र हुए २ कन्यायें हुई और भरत-ब्राह्मी का युगलिक ब्याह भी नहीं हुआ।
दिगम्बर-श्वेताम्बर मानते हैं कि भरतचक्रवर्ती बाहु. बली के साथ में जन्मी हुई सुन्दरी को स्त्रीरत्न बनाना चाहता था।