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________________ ४१ ... दिगम्बर-दिगम्बर शास्त्रोंसे केवली की साक्षरी वाणीके प्रमाण दीजिए जैन-दिगम्बर सम्मत शास्त्र भी केवली की वाणी को साक्षरी मानते हैं। देखिये प्रमाण (१) केवलीओंको सुस्वर और दुःस्वर दोनों प्रकृतियाँ उदय में होती है। (गोम्मटसार कर्मकांड गा० २७१) (२) तीर्थकर भगवान् पर्याप्ता हैं, 'भाषापर्याप्ति'वाले हैं। (बोधप्रामृत गा० ३४-३८, गोम्मटसार कर्म० गा० २७२,५९५,५९६,५९७) (३) केवली को १० प्राण हैं, माने भाषाप्राण भी है। (बोधप्रामृत गा० ३५, ३८) (४) केवली को १ औदारिक काययोग, २ औदारिक मिश्र. काययोग, ३ कार्मणकाययोग, ४ सत्य मनोयोग, ५ असत्या मृषा मनोयोग, ६ सत्य वचनयोग, ७ असत्यामृषा वचनयोग ये ७ योग होते हैं (क० ४२८) (५) छप्पिय पत्तिओ, बोधव्वा होंति सण्णिकायाणं । एदा हि अणिवत्ता, ते दु अपजया होंति ॥६॥ (मूलाचार परि• १२ पर्याप्ति श्लो. ६) (६) सार्वाध मागधीया भाषा ॥३९॥ __ अर्थ-भगवान् की दिव्य ध्वनि अर्धमागधी भाषा में होती है। भगवान् की दिव्य ध्वनि एक योजन तक सुनाई पड़ती है परन्तु मागध जातिके देव उसे समवसरण के अंत तक पहुँचाते रहते हैं ॥३९॥ (अन्य-प्रति श्लो. ४२) ध्वनिरपि योजनमेकं प्रजायते श्रोतहदयहारी गभीरः ॥५५॥ (अन्य प्रति श्लो०५८) (भा० पूज्यपादकृत नंदीश्वरभक्ति पं० लालारामजी जैनशास्त्रीकृत अर्थ पृ०१४७,१५२) (७-८) सार्वार्ध मागधीया भाषा। (बोधप्रामृत गा० ३२ टीका, दर्शनप्रामृत गा० ३५ टीका) (९-१०) तस्सट्ट पडिहारा ॥
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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