________________
३५
(७) नंदीश्वर भक्ति श्लो० ३१-३२ में गिरितल, दरे, गुफाएँनदी-वन-वृक्षके स्कंध जलधि और अग्निशिखा इत्यादि स्थान से साधुओंका निर्वाण होना बताया है। ____ अतः स्पष्ट है कि-आसन आदिका कोई खास नियम नहीं है। किसी भी आसन से केवल ज्ञान हो परंतु बाद में केवली भगवान विहार करते हैं एवं किसी भी मुद्रासे केवल ज्ञान हो परन्तु बादमें मेषोन्मेष होता है, सम्भवतः दिगम्बर विद्वानोंने इस ख्याल से सब केवलीओंको नहीं किन्तु सिर्फ तीर्थंकरों को ही मेषोन्मेष का निषेध कहा है। कुछ भी हो दिगम्बर शास्त्र एकान्ततः विशिष्ट मुद्रा और आसन के पक्ष में नहीं हैं।
दिगम्बर-आपने दिगम्बर शास्त्रों के आधारसे गृहस्थ और वस्त्रधारी मुनिको ममता न होने के कारण मोक्ष सिद्ध किया है, किन्तु प्रश्न यह है कि वस्त्र केवलज्ञान को ढंक देता होगा।
जैन-जहाँ ममता है वहां केवल ज्ञानकी मना है। ममता नहीं रहने से वस्त्र ही क्या समोसरन और सोने के कमल वगैरह ऋद्धि वैभव विभूति भी केवलज्ञानकी बाधक नहीं है, इसके अलावा छद्मस्थ ज्ञान भी वस्त्र से नहीं दबता है, फिर केवल ज्ञानका तो पूछना ही क्या ? केवल ज्ञान क्षायिक है रूपी अरूपी दृष्य अदृष्य सब पदार्थों का ज्ञान कराता है केवल ज्ञानी पर वस्त्र डालनेसे केवल ज्ञान दब जाय, ऐसा नहीं है। स्वयंभू स्तोत्र श्लोक ७३, १०९ में तीर्थंकरोंका वैभव बताया है और श्लोक १३२ में फणामंडल की स्वीकृति दी है। निर्ममता के कारण ये सब केवल ज्ञान के बाधक नहीं हैं।
दिगम्बर-केवली भगवान किसी चीजको छूते नहीं हैं, यहां तक कि भूमितलको भी नहीं छूते है फिर वस्त्र का क्या पूछना ?
जैन-यह भी एक निराधार कल्पना ही है, इसके विरुद्धमें दिगम्बर शास्त्रों के अनेक पाठ हैं। देखिए(१) स्वामी समन्तभद्रजी भूमि विहार बताते हैं।
( स्वयंभू स्तोत्र श्लो• २९, १०८) (२) आ०सिद्धसेनसूरि सिंहासन के ऊपर बैठने का उल्लेख करते हैं।
( कल्याण० २३)