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२८ उदय प्राप्त प्रकृति निरर्थक नहीं होती है वो अपना कार्य अवश्य करती है । इन उदय प्रकृतिओं से सिद्ध है कि केवलीओं के शरीर में ७ धातुएं हैं।
(२) ब्र० शीतलप्रसादजी केवली के शरीर में नख त्वचा रोआ और त्वचा पर की महीन झिल्लीका भी भेद बताते हैं । (चर्चासागर समीक्षा पृ. ८०) जब सात धातुओं का अभाव कैंसे माना जाय ?
(३) तीर्थंकरों के ३८ अतिशय में एक अतिशय यह है कि तीर्थकरों के खून और मांस सफेद होते हैं
केशः श्मश च लोमानि नखाः देताः शिरास्तथा । धमन्यः स्नायवः शुक्र-मेतानि पितृजानि हि ॥
(चर्चासागर, चर्चा १९९) : पित प्राप्त केश वगैरह रहे और दांत नख शुक्र वगैरह न रहें, यह असम्भवित है। वेद में मोक्ष माननेवाली समाज स्त्री प्राप्त नहीं किन्तु पुरुषप्राप्त अंगोंका निषेध करे, यह भी एक विसंवाद है।
(४) आ० कुन्द कुन्ड फरमाते हैं कि-अरिहंत भगवान को १० प्राण, ६ पर्याप्ति, १००८ लक्षण और गाय के दूधसा सफेद माँस तथा सफेद रुधिर होते हैं।
(बोध प्रामृत गा० ३१ । ३८) (५) केस णह मंसु लोमा, चम्म वसा रुहिर मुत्त पुरिसं वा।
णेवट्ठी णेव सिरा, देवाण सरीर संठाणे ॥
(मूलाचार अ० १२ लो० ११ । चर्चा सागर चर्चा १९९) संहनन रहित देवों को केश आदि का अभाव होता है, अर्थापत्ति से मानना पड़ेगा, कि-संहनन वाले को ये सब वस्तुएं होती हैं-रहती हैं।
(६) १२ प्रकृति “ ध्रुव उदय" कहलाती हैं, जो सबके उदय में रहती हैं । वे ये हैं-तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णादि चतुष्क, अगुरुलघु, निर्माण, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ १२। (व. शीतलप्रसादकृत मोक्षमार्ग प्रकाशक भा० २ अध्या० ४
नामकमेके उदयस्थान, पृ० १९१)