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किया। श्री उत्तराध्यान सूत्र में इस मुनि संघ का विचारमेद पाया जाता है। और बौद्ध त्रिपटकों में भी इस सघं का 'चाउजामो धम्मो" इत्यादि शब्दों से उल्लेख मिलता है। इस संघ की मुनि परम्परा आज भी उपकेश गच्छ कवलागच्छ इत्यादि नामों में प्रख्यात है। ___२. मंखलीपुत्र गौशाल का मुनि संघ, यह भगवान महावीर के छदमस्थ अवस्था के एक शिष्य का संघ है जो प्रधानतया नग्न ही रहा करता था, इसका प्राचार्य लोहार्य या अन्य कोई था जिन्होंने अपने गुरु की अन्तिम प्राज्ञा को शिरोधार्य बनाकर अपने गुरुके भी गुरु भगवान महावीर स्वामी के संघ में प्रवेश किया।
श्री सूत्र कृतांग और भगवती सूत्र में इस मुनि संघ का विस्तृत वर्णन मिलता है।
दिव्यादान (१२ । १४२, १४३) अवदान कल्वलता (पल्लव १७ । ४११) मझिम निकाय के चूलसागरोपम सुत्तंत ।।३। १० सन्दक ३।३।६ (पृष्ट ३०१, ३०४) महासुकुलदायी सुत्तंत २ । ३ । ७। महासच्चक ।।४।६ (पृष्ट १४४ ) महासीहनाद १२।२।२ ( पत्र. ४८) वगैरह बोद्ध शाम्रो में भी इस मत के विभिन्न उल्लेख हैं। . .......
एनसाइक्लोपीडिया प्रोफ रीलिजियन एन्ड एथिक्स वॉल्यूग १ पृ० २५६ में बड़े लेख द्वारा इस मुनि संघ पर अच्छा प्रकाश डाला गया है उसके लेखक ए० एफ० पार होअर्नल साहब बड़ी छान बीन के बाद बताते हैं कि उसके मत में १ शीतोक्क. २ बीजक्राय ३ प्राधाकर्म और ४ स्त्री सेवन की मना नहीं है (सूत्र कृतांग ) ये अचेलक हैं मुक्ता चार हैं हस्तावलेपन ( कर पात्र ) हैं । एकागारीक, ( एक घर से प्राधाकर्मी भिक्षा लेने वाले ) हैं ( मज्झिमनिकाय पृ० १४४ व ४८ ) यह मत पुरुषार्थ, पराक्रम का . निषेध करता है और नीयति को ही प्रधान मानता है।