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॥ वन्दे वीरम् श्रीचारित्रम् ॥
श्वेताम्बर-दिगम्बर
(भाग-दूसरा)
केवली अधिकार दिगम्बर-वस्त्र परिग्रह नहीं है, मूर्छा परिग्रह है, ओर २ उपधि भी संयमकी रक्षाके लीए अनिवार्य उपकरण हैं। वस्त्रधारीको निर्ग्रन्थपद व केवलज्ञान हो सकता है। जैनमुनि एक घरसे सम्पूर्ण भीक्षा म लेवे, विभिन्न घरोंमें परिभ्रमण करके गोचरी ग्रहण करे, अजैनोंसे भी शुद्ध आहार लेवें, गृहस्थी अन्यलिंगी शुद्र स्त्री और नपुंसक भी मोक्षमें जाय। ये सब बातें दिगम्बर शास्त्रोंसे भी सिद्ध हैं, उसमें तनिक भी शंका का स्थान नहीं है। मगर श्वेताम्बरोंको ओर २ कई बातें ऐसी हैं जो संशोधनके योग्य हैं।
जैन-प्रमाणोंसे व कसोटीसे सब बातोंका सत्य स्वरूप मिल जाता है, आपको दिगम्बर शास्त्रोंके ही प्रमाणोंसे ऊपरकी सब बातें सत्य व प्रामाणिक प्रतीत हुई है। इसी ही तरह ओर २ बातोंका निर्णय भी प्रमाणोंसे ही कर लेना चाहिये। आप प्रश्न. करो, मैं प्रमाण बताऊं, आप शास्त्रके पाठ देखो, सोचो, और निर्णय कर लो। परस्परविरोधी बातोंके निर्णयमें एवं समन्वयमें, प्रमाण ही आयना है।
दिगम्बर-श्वेताम्बर शास्त्रमें केवली भगवान के लिये कई विचित्र वातें लिखी है, वे सब हमको तो ठीक नहीं लगती हैं।
जैन-सिर्फ कहने मात्रसे ठोक-अठीक का निर्णय नहीं हो सकता है। केवली भगवान कैसे होने चाहिये ? इसका निर्णय