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[१४] अर्थ--सयोगिकवली जीव द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितने है ! प्रवेश से एक या दो अथवा तीन और उत्कृष्ट रूप से एक सौ अाठ होते हैं ॥ १३ ॥ पृ० ६५॥
मूलम्-मणुसिासु सासणसम्मइटिप्पहुडि जाव । अजोगि केवलि ति दयपमाणेण केवडिया ! संखेज्जा ॥ सू ४६॥ अर्थ-मनुष्यनियोमें सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर अयोगि केवली गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थान में जीत्र द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितन हैं ? संख्यात हैं ॥४६॥ पृ० २६१ ।
मूल–वेदाणुवादेण इत्थिवेदएसु पमत्तसंजद प्पहुडि जाव अणिपट्टि बादर सांपराइय पविट्ठ उवसमा खवा दव्य पमाणेण केवडिया ? संखेज्जा ॥ सू० १२६ ॥
अर्थ-स्त्रीश्रो में प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अनिवृत्ति बादर सांपराय प्रविष्ट उपशमक और क्षपक गुणस्थानतक जीव द्रव्यप्रमाण की अपेक्षा कितने हैं । संख्यात है ॥ १२६ ॥ पृ०
धवला टीका-पमत्तादणं ओघराार्स संखज्ज खंडे कए एय खंडमिस्थिवेद पमत्त दाओ भवंति इत्थिवेद उवसामगा दस .. खवगा वीस २० ॥ पृ० ४१६ ॥
अर्थ--प्रमत्त संयत्त आदि गुणस्थान संबन्धी श्रोघराशिको संख्यात से खडित करने पर एक खंड प्रमाण स्त्रीवेदी प्रमत्तसंयत आदि गुणस्थान वर्ति जीव होते हैं । स्त्रीवेदी उपशामक दश और क्षपक वीस हैं । पृ० ४१६।
मूलम्-णवंसय वेदेसु -- पमत्संजय पहुड़ि जाव अणियट्टि बादर सांपराइय पविट्ठ उवसमा खवा दव्व पमाणेण केवडिया ? संखेज्जा ॥ सू० १३० ॥
टीका-इत्थिवेद पमत्तादि रासिस्म संखेजदिमागमेत्तो णपुंसय वेद पमत्तादि रासी होदि ! कुदो ! इट्टपागग्गि समाषण णपुंसय वेदोदयेण सणिदाणेण पर सम्मत्त-संजमादीण मुवलं