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[ १२२ ] रराज राजकन्या मा, राजहंसीव सुस्वना । दीक्षा शरनदी शील-पुलिन स्थल शायिनी ॥ १७६ ॥ सुंदरी चात्त निर्वेदा, तां ब्राहमी मन्वदीक्षत । अन्ये चान्याश्च संविज्ञा, गुरो प्राब्राजिषु स्तदा ।। १७७॥
(मा० जिनसेन कृत आदि पुराण पर्व २४) शमिता चक्रवर्तीष्ट-कांतयाऽऽशु सुभद्रया ! ब्राहमी समीपे प्रव्रज्य, भाविसिद्धिश्चिरं तपः ॥ २८८ ॥ कृत्वा विमाने सानुत्तरे, ऽभूत्कल्पे ऽच्युते ऽमरः॥
(-आदि पुराण पर्व-४७ ) ३-जिनदत्तार्थिकाम्यणे, श्रेष्ठीभार्या च दीक्षिता ॥ २०६॥
(मा० गुण भद्र कृत उत्तर पुराण पर्व 1, देव की पुत्र पूर्वमव ) तथा सीता महादेवी. पृथिवी सुन्दरी युताः देव्यः श्रुतवती क्षांति-निकट तपसि स्थिताः॥ ७१२॥ सीताजी अच्युत देवलोक में गई । ७१६ ।
( उत्तर पुराण पर्व ६८ सीताधिकार ) ... भ० महावीर स्वामी के साधु आर्यि का श्रावक
और श्राविका की संख्या का वर्णन है । इनमें एलक खुल्लक का नाम निशान नहीं है।
(महावीर संघ ) ( उत्तर पुराण प०७४ श्लो० ३.१, ३७९) चंदना साध्वी ( उत्त० प० ७४ श्लो० ३७६ ) सुव्रतागणिनी, गुणवती श्रार्या ( उत्त० ७६ श्लो० १६५, १६७) पांचवे आरा की अन्तिम आर्यिका सर्व श्री।
(उ० पर्व ७६ लो० ४३६) ये सब आर्याएँ पांच महाव्रत धारिणी थी, छटे, सातवें गुण