________________
[१४] अधोगति में शक्ति भेद पाया जाता है । देखिए
१-तीर्थकर भगवान् मोक्ष में ही जाते हैं नरक में जाते ही नहीं हैं तीर्थंकर के जीवन में कोई ऐसा कर्म बन्ध होता ही नहीं है कि वे नरक जाय।
२-अभवि मनुष्य सातवें नरक में जाता है मोक्ष में कतई नहीं जाता है यह कहना चाहिये वह मोक्ष पाने में असमर्थ है।
३-वासुदेव प्रतिवासुदेव नरक में ही जासकते हैं, मोक्ष में नहीं । देवलोक में भी नहीं । यहां गति की साम्यता नहीं रहती है।
४-युगालक स्वर्ग में ही जाते हैं नरक में नहीं, फिर भी गति साम्यता कैसे मानी जाय ?
५-भूज परिसर्प, पक्षी, चतुष्पद, और उर परिसर्प, नाचे तो क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवें नरक तक में जाने हैं। मगर ऊपर सिर्फ सहस्रार देवलोक तक ही जाते हैं । यहाँ नो. गति साम्यता की कल्पना का फुरचे फुर्चा हो जाता है।
६-मत्स्य सातवें नरक में जा सकता है। मोक्ष में नहीं । यदि. गति कार्य में साम्यता होती तो मत्स्य मोक्ष में भी चला जाता। मगर वह बेचारा ऊँचा अहमेन्द्र पद पाने में भी असमर्थ है।
७-स्त्री मोक्ष में जा सकती है सातवीं नरक में नहीं !
प्रागति के नियम में भी वैसी ही विचित्रता पाई जाती है, जैसा कि
नारकी से श्राकर मनुष्य बना हुआ जीव तीर्थकर बन सके, मोक्षमें जाय, नरक में भी जाय, किन्तु वासुदेव बलदेव या चक्रवर्ती न हो सके । यह आगति की विचित्रता है।