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( जैनधर्मप्रकाश पु० ५६ ० ४ सं० १६६६ - आषाढ़ पृ० १४८ )
अब इस नियम के अनुसार देखा जाय तो मानना अनिवार्य होगा कि स्त्री मोक्ष में नहीं जासकती है कारण १. स्त्री सातवीं नारकी में भी नहीं जासकती है ।
देखिए श्रागम प्रमाण
पढमं पुढवीमसरणी, पढमं वितयं च सरिसवा जंति । पक्खी जाव दु तदियं, जाव दु चउत्थीं उरसप्पा ॥ ११२ ॥ पंचमीति सीहा, इत्थिश्रो जति छट्टि पुढविति । गच्छति माधवीति, मच्छा मणुया य ये पावा ॥ ११३ ॥ वाट्टया य संता, रइया तमतमादु पुढवदो । यं लहंति माणुसतं, तिरिक्खजोखी सुवणयंति ॥ ११४ ॥ छठ्ठीदो पुढबीदो, उवाट्टिदा अणंतर भवम्मि |
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भज्जा माणुसलंभे, संजमलभेण उ विहीणा ॥ ११६ ॥ होज्ज दु संजमलाभो, पंचमखिदि - गिग्गतस्स जीवस्स । त्थी अंतकिरिया, शियमा संकिलेसेा ॥ ११७ ॥ शु होज दु शिन्बुदिगमणं, चउत्थीखिदि गिगतस्स जीवस्स । णियमा तित्थयरतं, यत्थित्ति जिहिं पण्णत्तं ॥ ११८ ॥ ते परं पुढवी, भयागब्जा उवरिरमा हु णियमा अतरभवे, तित्थयरस्स उप्पत्ती ॥ ११६ ॥ गिरयेहिं णिग्गदाणं, अयंतरभवम्मि रात्थि खियमादो । बलदेव वासुदेवत्तणं च तह चक्कवाद्वृत्तं ॥ १२० ॥
रइया ।
( आ० वड्डेरककुल 'मूलाचार, परिषछेद १२)