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यही है कि उनके अभाव में केवल ज्ञान का अभाव नहीं माना जाता है ।
इससे स्पष्ट है कि स्त्री केवलिनी और मोक्ष गामिनी हो सकती है।
दिगम्बर — स्त्री श्राचार्य नहीं होती है और न पुरुष को शिक्षा देती है।
जैन --स्त्री “गणिनी" बनती है, स्त्री समाज की अपेक्षा से वह श्राचार्य पदवी है, वो "महत्तरा" भी बनती है । क्या स्त्री अपने पुत्र को उपदेश नहीं देती है ? और वह ही उसको सन्मार्ग में लाने वाली है । स्वयं दीक्षा लेकर अनेक जीवों को धर्म में लाती है स्थापित कराती है ।
दिगम्बर - दि० पं० न्यामतसिंह का मत है कि एक पुरुष जिस तरह हजारों स्त्रियाँ रख कर प्रति वर्ष हजारों संतान उत्पन्न कर सकती है । क्या स्त्री भी उस तरह कर सकती है ? स्त्री वर्ष भर में १ बच्चा कर सकती है । इसलिये पुरुष सबल है स्त्री अबला है मोक्ष नहीं पा सकती है ।
( सत्य परीक्षा पृ० ४४ भ्रम निवारण पृ० १२ )
जैन – यदि सन्तान की संख्या ही मोक्षगामीके बल-वीर्य का थर्मामीटर है तो सौ पुत्र के पिता ऋषभदेवजी सबल, दो संतान . के ही उत्पादक युगार्लिक मध्यमबल और ब्रह्मचारी नेमिनाथजी वगेरह अबल माने जायँगे, इस हिसाब से तो भ० नेमिनाथ श्रादि को मोक्ष ही नहीं होना चाहिये था । उस थर्मामीटर से तो कुत्ता सबल मनुष्य अबल माना जायगा । इतना ही क्यों ? समूईम का आदि कारण सबल, और गर्भज का श्रादि कारण अबल ही माना जायगा । मोक्ष आपके इन सबलों की ही अमानत बनी रहेगी क्या ?