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________________ [ ९८ ] २- स्वदेशेऽनक्षरम्लेछान, प्रजाबाधा विधायिनः । कुलबुद्धि प्रदानाद्यैः स्वसाकुर्यादुपक्रमैः ॥ ७६ ॥ ... (भा. लिनसेनीव भादिपुराण, पर्व ४२, पलो० ०१) ३- उच्चैर्गोत्रोदयादेरार्याः नीचैर्गोत्रादयादेश्च म्लेच्छाः (लोकवार्तिक, भ. ३, सूत्र ३.) ....४-तथान्तर्डीपूजा म्लेच्छाः परे स्युः कर्मभूमिजाः ॥ कर्मभूमि भवा म्लेच्छाः : प्रसिद्धा यवनादयः । स्युः परे च तदाचार+पालनाद बहुधा जनाः ॥ (लोक वार्तिक, पृ० .३५०) ५-आर्य खंडोद्या आर्या, म्लेच्छा केचिच्छकादयः । म्लेच्छ खण्डोद्भवा म्लेच्छा, अन्तरद्वीपजा अपि ॥ आय वंडोद्भव म्लेच्छ ग्रह आर्य भूमि की वाशिन्दा चौथे पारा की कलेच्छ जाति है। (प्रा० अमृतचन्द्र कृत तत्वार्थसार अ० १, श्लो० २१२) ऐसे ही ऐसे अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। सारांश-'यहाँ चौथे बारे में म्लेच्छ नहीं होते हैं। यह दिगम्ब. रीय मान्यता द्रमुक्ति के विरोध के सिलसिले में चलाई हुई कल्पना मात्र है। दिगम्बर-श्वेताम्बर समाज "स्त्री मुक्ति" मानता है यह ठीक है? 'जैन-दिगम्बर प्राचार्य भी स्त्रीमक्ति के पक्ष में हैं और वह सर्वथा वास्तविक ही है। दिगम्बर-स्त्री जाति में भिन्न २ प्रकार की त्रुटियां हैं अतः जो मुक्ति नहीं पा सकती हैं, जैसे कि--
SR No.022844
Book TitleShwetambar Digambar Part 01 And 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarshanvijay
PublisherMafatlal Manekchand
Publication Year1943
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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