________________
चतुर्थ अध्याय : ८१ नाम का वस्त्र जो अधिक मुलायम होता था दुकूल वृक्ष की भीतरी छाल से निर्मित किया जाता था । '
(ख) रेशमी वस्त्र
आचारांग में रेशमी वस्त्रों को "भंगिय" कहा गया है ।" भंगिय वस्त्र वृक्षों के पत्तों पर पले विशेष कीड़ों की लार से बनता था । अनुयोगद्वार में अंडों से निर्मित रेशमी वस्त्रों को अंडज और कीड़ों की लार से बने वस्त्रों को " कीडज" कहा गया है । आचारांग में पांच प्रकार के रेशमी वस्त्रों का वर्णन आया है*
पट्ट : पट्ट वृक्ष पर पले कीड़ों की लार से निर्मित ।
मलय : मलयदेश में उत्पन्न वृक्षों के पत्तों पर पले कीड़ों की लार
से निर्मित |
अंशुक : दुकूल वृक्ष की भीतरी छाल के रेशों से निर्मित । चीनांशुक : चीन देश के ।
देशराग : रंगे हुए वस्त्र ।
कौटिलीय अर्थशास्त्र में नागवृक्ष, बड़हर, मौलसिरी तथा वटवृक्ष के पत्तों पर पले कीड़ों की लार से निर्मित वस्त्र को 'पत्रोण' कहा गया है । मगध में बना "मागधिक", पुण्ड्र में बना "पौण्डरीक" और सुवर्णकुल्या में बना "सौवर्णकुल्या" कहलाता था । काशी का रेशमी वस्त्र अधिक बहुमूल्य होता था । महावीर को दीक्षा के समय एक लाख मूल्य वाला क्षौम वस्त्र पहनाया गया था ।
(ग) ऊनी वस्त्र
.
आचारांग में पशुओं के बाल से कहा गया है ये पांच प्रकार के होते
निर्मित ऊनी वस्त्रों को " जंगिय" थे— मेसाणि - भेड़ के बालों से,
१. दुगुल्लातो अंभंतरहिते जं उप्पज्जति तं असुय - आचारांग २ / ५ /१/१४५
२. आचारांग २।५।१।१४५; निशीथचूर्णि भाग २, पृष्ठ ३९९
३. अनुयोगद्वार २८ ३८
४. आचारांग २।५।१।१४५
५. किरीडयलाला मलयविसए मलयाणि पत्ताणि कोविज्जति”
६. कौटिलीय अर्थशास्त्र, २११।२९
७. आचारांग २।१५
निशीथचूणि, भाग २, पृष्ठ ३९९