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“६०: प्राचीन जैन साहित्य में वणित आर्थिक जीवन
उसकी माँ धारिणी को राजगृह की सीमा से संलग्न उद्यान में भ्रमण की दोहद (इच्छा) हई थी।' उद्यानों में भ्रमण के लिये आने वाले व्यक्तियों के लिये विश्रामगृहों की भी व्यवस्था होती थी।
उद्यानों में विभिन्न प्रकार की लतायें और फूल लगाये जाते थे, जिनमें जाई, मोगरा, जूही, मल्लिका, वासन्ती, वस्तुल, शैवाल, मृगदंती, पद्मलता, नागलता, अशोकलता आदि का उल्लेख है। कोई भी उत्सव या समारोह पुष्पों के बिना सम्भव नहीं था। प्रजाजन उत्सवों पर फूलों के आभूषण, विलेपन, अंगराग और मालाओं का भरपूर प्रयोग करते थे। राज्योद्यान के मालियों का समाज में विशेष स्थान था । व्यवहारसूत्र में उल्लेख है कि एक माली ने राजा को एक सुन्दर माला बनाकर भेंट की। राजा ने प्रसन्न होकर उसे प्रचुर मात्रा में धन दिया।" अन्तकृतदशांग से ज्ञात होता है कि अर्जुन, राजगह का एक प्रतिष्ठित तथा सम्पन्न माली था। उसने अपनी पुष्पवाटिका में पांच रंग के फूल लगा रखे थे। प्रातःकाल वह अपनी वाटिका में अपनी पत्नी के साथ पूष्पचयन के लिये चल देता था और पुष्पों से भरी टोकरियाँ बाजारों, हाटों में बेचकर धन अजित करता था। कोंकण देश में लोग फूलों के विक्रय से जीवन-यापन करते थे।
जैन ग्रन्थों में गाँवों और नगरों के निकट ऐसे वनों, उपवनों के उल्लेख मिलते हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक औषधयुक्त फल होते थे । इन उपवनों में आम, जम्बूफल, शाल, अखरोट, पोलू, शेलू, सल्लकी, मोचकी, मालूक, बकुल, पलाश, करंज, सीसम, पुत्रजीवक, अरिष्ट, बहेड़ा, हरड़, भिलवा, अशोक, दाडिम, लूकच, शिरीष, मातुलिंग, चन्दन, अजुन, कदम्ब आदि के वृक्ष होते थे ।' उपासकदशांग के छठे-सातवें अध्याय
१. भगवती १:/६/२ २. प्रज्ञापना १/४०; औपपातिक सूत्र २ ३. प्रज्ञापना १/२० ४. बृहत्कल्पभाष्य भाग ३, गाथा २५६० ५. व्यवहारसूत्र. १/४/६ ६. अन्तकृतदशांग ६/३/४ ७. बृहत्कल्पभाष्य भाग २, गाथा १२३९ ८. प्रज्ञापना १/४०; औपपातिकसूत्र २