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तृतीय अध्याय : ४९ भिन्न-भिन्न प्रकार के सिंचाई के साधनों का प्रयोग किया जाता था।' बृहत्कल्पभाष्य के वृत्तिकार के अनुसार लाट देश में प्रमुख रूप से वर्षा के जल से सिंचाई होती थी, सिन्धु देश में नदी के जल से, द्रविड़ में तालाब से तथा उत्तर भारत में कुएं के जल से सिंचाई होती थी। इसी प्रकार नदियों की बाढ़ के पानी से भी सिंचाई करने के उल्लेख प्राप्त होते हैं । कानन द्वीप में पानी की अधिकता के कारण नावों पर खेती होतो थी। आज भी कश्मीर में डललेक में लकड़ी के पाटों पर मिट्टी डालकर खेती को जाती है ऐसे खेतों को चलते-फिरते खेत कहा जाता है।
राज्य द्वारा की गई सिंचाई व्यवस्था का क्या स्वरूप था, इसका कोई विशेष उल्लेख जैन ग्रन्थों में नहीं प्राप्त होता है। अन्य स्रोतों से ज्ञात होता है कि राज्य की ओर से सिंचाई का समुचित प्रबन्ध किया जाता था। प्राचीन अभिलेखों और प्रशस्तियों में राजाओं द्वारा निर्मित जलाशय, कूप, वापी, प्रपा ( प्याऊ ), सरोवर, तडाग आदि जल-स्रोतों का उल्लेख है। लगभग १५० ई० के रुद्रदामन के गिरनार शिलालेख से ज्ञात होता है कि मौर्यकालीन सौराष्ट्र के प्रशासक पुष्यमित्र ने सुदर्शन सरोवर बनवाया था। इसके जल का उपयोग सिंचाई के लिए होता था। एक बार अधिक वर्षा होने के कारण उसका बाँध टूट गया । रुद्रदामन् ने उस बाँध को पुनः बँधवाया। स्कन्दगुप्त ने भी इस बाँध का जीर्णोद्धार करवाया था। १. "अन्भे नदी टलाए, कूवे अइपूरए य नाव वणी'
-बृहत्कल्पभाष्य भाग २ गाथा १२३९ २. सस्यं निष्पद्यते वृष्टिपानीयरित्यर्थः, यथा लाटविषये, क्वापि नदीपानीयः,
यथा सिन्धुदेशे, क्वचित्तु, यथा द्रविडविषये, क्वापि कूपपानीयैः यथा उत्तरापथे, क्वचिदतिपूरकेण, यथा बन्नासायां पूरादवरिच्यमानायां तत्पूरपानीयभावितायां क्षेत्रभूमौ धान्यानि प्रकीर्यन्ते, यथा वा डिम्भरेलके महिरावण पुरेण धान्यानि वपन्ति । “नाव' इति यत्र नावमारोप्य धान्य
मानीतमुपभुज्यते यथा काननद्वीपे वणित्ति । वही, भाग २ पृ० १२३९ ३. “विश्ववर्मन का गंगधार प्रस्तर लेख" ___फ्लीट जान फेथफुल, भारतीय अभिलेखों का संग्रह; पृष्ठ ९६ ४. रुद्रदामन का जूनागढ़ शिला-अभिलेख-पंक्ति १५
नारायन ए० के०, प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह (२) पृष्ठ ४३ ५. स्कन्दगुप्त का जूनागढ़ शिला-अभिलेख, वही (२) पृ० १३३ .