________________
:१४ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन रित उद्योग प्रमुख थे ।' उपासकदसांग में वनकर्म अर्थात् लकड़ी काटने, अंगारकर्म अर्थात् कोयला बनाने का उल्लेख है, जो वनों पर ही आधारित थे । आचारांग से वनोत्पादित वस्तुओं में लकड़ी का आर्थिक महत्त्व ज्ञात होता है। खनिज सम्पदा
जैन ग्रन्थों में विविध प्रकार के खनिज पदार्थो के उल्लेखों से स्पष्ट होता है कि प्रारम्भिक शताब्दियों में लोगों को खनिज पदार्थों का पर्याप्त ज्ञान था। जिस स्थान पर लोहा, ताँबा आदि खनिज द्रव्य निकाले जाते थे उसे “आकर" कहा जाता था।" उत्तराध्ययन आदि जैन ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि खानों से खारी मिट्टी, लोहा, ताँबा, सीसा, चाँदी, सूवर्ण वज्र, हरिताल, मनसिल, शस्यक, अंजन, प्रवाल, अभ्रपटल, अभ्रमालुक, गोमेदक, रुचक, अंकरत्न, स्फटिक, लोहिताक्ष, मरकत, मसारगल्ल, भुजमोचक, इन्द्रनोल, चन्दन, गेरुक, हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, चन्द्राप्रभ, वैदर्य, जलकान्त, सूर्यकान्त आदि खनिज पदार्थ निकाले जाते थे ।
कौटिलीय अर्थशास्त्र से भी मौर्यकाल में पाये जाने वाले उक्त खनिज पदार्थों की पुष्टि होती है। देश की खनिज सम्पदा से धातु उद्योग में बड़ी उन्नति हुई थी। जल सम्पदा
सर्वत्र मानव सभ्यता का विकास नदियों की उपजाऊ घाटियों में ही हुआ, जिससे जल की सुविधा के साथ-साथ कृषि हेतु उपयुक्त भूमि व १. उपासकदशांग, १/३८. २. वही, १/३८. ३. आचारांग, २/४/१/१३८. ४. प्रज्ञापना १/२४ : जीवाभिगम, ३/२/२१. ५. बृहल्कपभाष्य, २|१०९०. ६. अय-तंब तउय-सीसग-रुप्प-सुवण्णे य वइरे य, हरियाले-हिंगुलुए, मणोसिला,
सासगजंगपवाले अभ पडलऽभवालय बादरकाए मणिविहाणायोमेज्जए य रुयगे अंके फलिहे य लोहियक्खे य मरगय मसारगल्ले भुयमोयग इंदनीले य चंदण गेरुय हंसगब्थ पुलये सौगंधिए य बोधव्वे चन्दप्पह-वेरुलिए जलकते सूकन्तेजच-उत्तराध्ययन ३६/७३/७६; सूत्रकृतांग २/२/७४५; प्रज्ञापना
१/२४, जीवाभिगम १/२/२१. १७. कौटिलीय अर्थशास्त्र, २/६/२४.