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द्वितीय अध्याय : ११
और बान्धव हैं, वही पण्डित और सच्चा पुरुष है। कौटिलीय अर्थशास्त्र में कहा गया है कि अर्थ के साथ ही सब सम्बन्ध होते हैं, अर्थवान ही सबका आदरणीय होता है, अर्थहीन व्यक्ति की हितकर बात भी नहीं सुनी जाती, उसकी पत्नी भी उसका अपमान कर देती है । पउमचरियं में धन का महत्त्व बताते हुये कहा गया है कि जिसके पास धन है वही सुखी है, वही पण्डित है, वही यशस्वी है, वही महान् है, धर्म भी उसके अधीन है, अहिंसा के उपदेश वाले धर्म के पालन में भी धनवान् ही समर्थ हो सकता है। वसुदेवहिण्डी में कहा गया है कि अर्थ से ही सब कार्य सम्भव होते हैं, धन होने से ही लोग आदर करते हैं, अल्पधन जानकर आत्मीय भी मुँह मोड़ लेते हैं, परायों का तो कहना हो क्या। कुवलयमालाकहा में कहा गया है कि धन के बिना धर्म और काम नहीं हो सकते ।" समराइचकहा में कहा गया है कि अर्थरहित पुरुष को पुरुष नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वह न तो यश प्राप्त कर सकता है और न सज्जनों को संगति
और न ही परोपकार कर सकता है। वज्जालग्गं में कहा गया है कि धनहीन का कोई आदर नहीं करता। स्मृतियों में भी धन के महत्त्व को स्वीकार किया गया है। बृहस्पति भी धन को समस्त क्रियाओं का उद्गम मानते हैं। शुक्र ने भी अर्थ को धर्म, काम और मोक्ष का आधार माना है।
१. महाभारत शान्तिपर्व ४/९/२६. २. जस्सऽत्थो तस्स सुह, जस्सऽत्यो पण्डिओ य सो लोए । जस्सऽत्थो सो गुरुओ,
अत्थविहूणो य लहुओ उ । तस्स महत्यो य जसो, धम्मो वि य तस्स होइ साहीणो। धम्मो वि सो समत्थो, जस्स अहिंसा समुदिट्ठा-विमलसूरि,
पउमचरियं ३५।६६,६७. ३. कौटिलीय अर्थशास्त्र, चाणक्यसूत्राणि १९०,२५४,२९१, २९२ ४. अत्थस्य किए जाओ वेसाण वि नियमुहाई अय्पति अय्पा जाणं वेसे पुरोणु.
किहं वल्लहो तासिं, वसुदेवहिण्डी १/३४. ५. धम्मत्थो कामोविन्होहिइ अत्थासो सेसपि-कुवलयमालाकहा, पृ० ५७. ६. हरिभद्रसूरि, समराइच्चकहा, ४२४६. ७. जयवल्लभ, वज्जालग्ग गाथा १४३. ८. बृहस्पतिस्मृति व्यवहारकाण्ड ६/२४. ९. शुक्रनीति १/८४.