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१७६ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन
वेस्टि (बेगार)-जो लोग कर देने की स्थिति में नहीं होते थे उन्हें राजा के लिये बेगार करनी पड़ती थी। उत्तराध्ययन में उल्लेख है कि श्रमिक राजाज्ञा से बेगार करते थे, अपनी इच्छा से नहीं।' बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि जब राजा या राज्यकर्मचारी यात्रा पर जाते थे तो मार्ग में जो गांव पड़ते थे उनको यात्रा का व्यय वहन करना पड़ता था। निशीथचूर्णि से ज्ञात होता है कि नट, वरुड़, छिटपग आदि को अपना एक दिन का वेतन या परिश्रम राज्य कर के रूप में देना पड़ता था । आदिपुराण में बेगार लेना राजा का अधिकार कहा गया है। मनुस्मृति में भी बढ़ई, लोहार आदि शिल्पियों द्वारा राजा के लिए एक दिन की बेगार करने का निर्देश है।" गौतमधर्मसूत्र में भी शिल्पियों द्वारा मास में एक दिन राजा के लिये बेगार करने और उस दिन राजा द्वारा उन्हें भोजन देने के लिये कहा गया है। श्रेणिक ने अपने पुत्र के जन्मोत्सव पर १० दिनों के लिये किसानों को बेगार से मुक्त कर दिया था। इसी प्रकार रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने जनकल्याणार्थ सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार करवाया था। उसने उस पुण्यकार्य हेतु न तो प्रजा पर अतिरिक्त कर लगाये और न ही किसी से बेगार ली।
राजकीय कर-संग्रह-राज्य को कर न देना अपराध था। करों को कठोरता से संग्रहीत किये जाने के प्रमाण मिलते हैं। बृहत्कल्पभाष्य में शस्त्र आदि का भय दिखाकर कर-संग्रह करने का उल्लेख है। निशीथ
१. उत्तराध्ययन, २७/१३ २. बृहत्कल्पभाष्य भाग ५, गाथा ५१७४ ३. निशीथचूणि भाग ४, गाथा ६२९४, ६२९५ ४. विष्टिदण्डकराणांच निबन्धो राजसादभेवत्, जिनसेन-आदिपुराण
१६/१६८ ५. कारुकाञ्छिल्पिनश्चैव शूद्रांश्चात्मोपजीविनः स्कैकं कारयेत्कर्म मासिमासि
महीपीता, मनुस्मृति, ७/१३८ ६. गौतमधर्मसूत्र, २/१/३१, २/१/३४ ७. ज्ञाताधर्मकथांग १/८१ ८. रुद्रादामन का जूनागढ़ शिलालेख पंक्ति १५; ए० के० नारायण :
प्राचीन भारतीय अभिलेख संग्रह, पृ० ४८ ९. बृहत्कल्पभाष्य भाग ५, गाथा ५१०४