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सप्तम अध्याय : १७१:
वस्तु के क्रय-विक्रय की दर, मार्ग- व्यय, यान, वाहनों का व्यय और व्यापारी के भरण-पोषण हेतु पर्याप्त धन को छोड़कर लगाया जाता था । मनुस्मृति में उल्लिखित है कि राजा वस्तुओं के क्रय-विक्रय, मार्गव्यय आदि को देखकर व्यापारी पर कर लगाये । निशीथचूर्णि से ज्ञात होता है कि पण्य वस्तुओं पर मूल्य का १९/२० चुंगी के रूप में लिया जाता था, एक व्यापारी के पास बर्तनों से भरी बीस गाड़िया थीं, शुल्काधिकारी ने उससे बर्तनों की एक गाड़ी चुंगी ( शुल्क ) के रूप में ले ली । कौटिलीय अर्थशास्त्र के अनुसार तौलकर बिकने वाली वस्तुओं पर १ / १०, गिनकर बेची जाने वाली वस्तुओं पर १/११ और नाप कर बेची जाने वाली वस्तुओं पर १/१६ शुल्क के रूप में ग्रहण किया जाता था । " मनुस्मृति में व्यापारियों से १/ २० कर ग्रहण करने का उल्लेख है ।" गौतमधर्मसूत्र में भी विक्रय की जाने वालो वस्तुओं पर १/२० राजकीय कर माना गया है । " याज्ञवल्क्यस्मृति में भी वस्तुओं पर १/२० शुल्क स्वीकृत किया गया है । ज्ञाताधर्मकथांग से ज्ञात होता है कि कभी-कभी राजा प्रसन्न होकर व्यापारियों को वाणिज्यकरों
मुक्त भी कर देते थे । चम्पा नगरी के पोतवणिक् व्यापार के लिये... मिथिला गये थे, उन्होंने राजा को बहुमूल्य भेंट देकर प्रसन्न कर लिया था.
१. 'सुंकादीपरिसुद्ध, सइलाभे कुणइ वाणिओ चिट्ठ'
बृहत्कल्पभाष्य, भाग २, गाथा ९५२ २. ' क्रयविक्रयमध्वानं भक्तं च सपरिव्ययम् । योगक्षेमं च संप्रेक्ष्य वणिजो दापयेत्करान्', मनुस्मृति, ७ / १२७
३. सुंकितो भण्णति-वीसतिभाओ, ताहे तेण वणिएण य सुंकिएण य परिच्छित्ता, मा ओरुहणपच्चारुहणंतेसु वक्खेवो भविस्सति त्ति काउं एक्का भंडी के दिण्णा । - निशीथचूर्णि भाग ४ गाथा ६५२१ ४. षोडषभागो मानब्याजी, विंशतिभागस्यतुलामानम् । गण्यपण्यानामेकादशभागः - कौटिलीय अर्थशास्त्र, २।१६।३६
'शुल्कस्थानेषु कुशलाः सर्वपण्यविचक्षणाः । कुर्यरधं यथापण्यं ततो विशं नृपो हरेत् ।'
- मनुस्मृति, ८ ३९८
— गौतमधर्मसूत्र २।१।२६
५.
६. विंशतिभागः शुल्कः पण्ये
७. याज्ञवल्क्यस्मृति, २।२६९