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सप्तम अध्याय : १६९
मनुस्मति में कहा गया है कि भूमि की उपज के अनुसार राजा को १/६, १/४, १/१२ भूमिकर लेना चाहिये।'
गौतमधर्मसत्र में कहा गया है कि कृषक को उपज के अनुसार १/६, १/४, १/१० कर के रूप में देना चाहिये ।२ रघुवंश में कहा गया है कि फसल कटने और कृषकों के धान्य उठा लेने के पश्चात् अन्न कणों को जो ऋषि अपने निर्वाह के लिये चुनते थे उसका भी १/६ भाग वे राजा को देते थे। उपज का बँटवारा 'द्रोणमापक' नामक राजस्व अधिकारी करता था वह उपज का १/६ भाग राज्यकर ले लेता था। ऐसा प्रतीत होता है कि भूमिकर उपज का राज्यांश था, जिसे 'भाग' कहा जाता था और जो सामान्य उपज का १/६ होता था। रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में उत्कीर्ण है कि राज्यकोश बलि, शल्क तथा भाग से भर गया था ।" भूमि के क्रय-विक्रय पर भी राज्य १/६ कर ग्रहण करता था। ४४९ ई० के पहाड़पुर ताम्रलेख के अनुसार नाथशर्मा ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने ३ दीनार जमा करके १-१/२ कुल्यावाय भूमि खरीदी और उस प्रांत के मुखिया को १/६ भाग कर के रूप में दिया । प्रजा से कर के रूप में प्राप्त अन्न को राष्ट्रीय कोष्ठागार में संग्रहीत किया जाता था। ___ भूमि से प्राप्त गुप्तनिधि राजकीय संपत्ति समझी जाती थी। निशीथचूर्णि में एक ऐसे वणिक् का उल्लेख है जिसको गुप्तनिधि प्राप्त हुई थी पर जब राजा को इसका पता चला तो उसने वणिक की सम्पूर्ण निधि जब्त कर ली। इसी प्रकार एक अन्य व्यक्ति को भूमिस्थ दीनारें प्राप्त हुई
१. कौटिलीय अर्थशास्त्र ५/२/९० २. राज्ञे वलिदानं कर्षकैर्दशमष्टं षष्ठच, गौतमधर्मसूत्र, २/१/२४ ३. कालिदास रघुवंश ४/८ ४. खेर, एन० एन०-एग्रेरियन एण्ड फिजिकल इकोनोमी इन मौर्या एण्ड पोस्ट
मौर्या एज, पृ० २५२ ५ रुद्रदामन का जूनागढ़ शिला अभिलेख, नारायण, ए० के० : प्राचीन भारतीय ___ अभिलेख संग्रह, द्वितीय भाग; पृ० ४३ ६. 'धर्मषडभागप्याय' उपाध्याय, वासुदेव :
प्राचीन भारतीय अभिलेख, पृ० ३५ ७. ओघनियुक्ति, पृ० २३ ८. 'एक्केणं वणिएणं णिही उक्खणिओ, तं अण्णेहिं गाउं रण्णो णिवेइयं,
वणिओ दीडयो णिही य से हडो' निशीथचूणि भाग ४, गाथा ६५२२.