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षष्ठ अध्याय : १५५
अहिंसा का अतिचार माना है । कौटिलीय अर्थशास्त्र में भी श्रमिकों की सुरक्षा हेतु विधान बनाने के प्रसंग हैं जिनके अनुसार स्वामी को निर्धारित वेतन देना पड़ता था और जो ऐसा नहीं करता था वह दण्ड का भागी होता था । यूनानी विद्वान् स्ट्रैबो ने मेगस्थनीज का उद्धरण देते हुये कहा है कि शिल्प तथा औद्योगिक समितियाँ उद्योग सम्बन्धी कार्यों की देखभाल करती थीं । ये शिल्पियों और श्रमिकों का पारिश्रमिक तय करतीं, उनके कार्य का निरीक्षण करतीं, कार्य और गुण के अनुरूप उन्हें वेतन दिलवाती थीं । ३
राजकीय कर्मचारियों को पेंशन देने के भी उदाहरण मिलते हैं । राजा श्रेणिक ने पुत्र जन्म का संवाद देने वाली दासी के लिये आजीवन भरणपोषण की व्यवस्था कर सेवा मुक्त कर दिया था । अगर सेवाकाल में राज्य कर्मचारी की मृत्यु हो जाती तो उसके परिवार की सहायता की जाती और यथासंभव उसके स्थान पर उसके पुत्र को नौकरी देने का प्रयत्न किया जाता । " कौटिल्य ने भी राज्यकार्य करते हुये मरने वाले राज्यकर्मचारी के परिवार को वेतन देने का निर्देश दिया था । '
शुक्र के अनुसार जिस सेवक को सेवा करते हुये ४० वर्षं व्यतीत हो जायँ उसे सेवा - मुक्त करके, उसके भरण-पोषण हेतु उसको आधा वेतन देना चाहिये । वर्तमानकाल में जैसे – कर्मचारी का भविष्य सुरक्षित करने के लिए उसके वेतन से अनिवार्य बचत जमा करने की योजनायें हैं वैसे ही शुक्र के काल में भी कर्मचारियों के भविष्य को सुरक्षित करने का प्रयत्न किया जाता था । '
अभिलेखों से ज्ञात होता है कि श्रमिकों की श्रेणियाँ अपना धन कल्याणकारी कार्यों में भी लगाती थीं । कुमारगुप्त के मन्दसौर अभिलेख
१. उपासकदशांग १ / ३२
२. कौटिलीय अर्थशास्त्र २ / २४ /४०
३. पुरी, बैजनाथ — इण्डिया एज डिस्क्राइब्ड बाई अर्ली ग्रीक राइटर्स, पू० ६३
४. ज्ञाताधर्मकथांग १ /२०
५. बृहत्कल्पभाष्य भाग ३, गाथा ३२६०
६. कौटिलीय अर्थशास्त्र ५ / ३ / ९१
७. शुक्रनीति २/४१३
८. वही २/४१७