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१२२ : प्राचीन जैन साहित्य में वर्णित आर्थिक जीवन
साथ भी भारत के व्यापारिक सम्बन्ध थे वहाँ से मंजीठ, सोना, चांदी, मोती और मंगे भारत में आते थे।'
कुवलयमालाकहा से ज्ञात होता है कि भारतीय व्यापारी बब्बरकुल या बैंबिलोन तक जाते थे। वहाँ वे भारतीय वस्त्र बेचकर हाथी-दाँत और मोती लाते थे। जातकग्रन्थ में भी बावेरु के साथ व्यापार के उल्लेख आये हैं भारतीय व्यापारियों ने बावेरु में सौ काषार्पण में एक कौआ बेचा था। चीन से भारत में रेशमी वस्त्र लाया जाता था । कुवलयमालाकहा में उल्लेख है कि एक व्यापारी भारत से भैंसे और नीलगाय लेकर चीन गया था उन्हें बेचकर वह वहाँ से श्वेतरेशमी वस्त्र लाया था। संघदासगणि के अनुसार चारुदत्त आभूषण, लाख और लाल वस्त्र लेकर हूण, खस और चीनियों के देश गया था।५ चीन से आयातित रेशमी वस्त्र "चीनांशक' कालिदास के काल में भी भारत में बहुत लोकप्रिय था ।
एस० के० मैती के अनुसार गुप्तकाल में भारत और रोम के मध्य द्रव्य व्यापार में बहुत वृद्धि हो गयी थी। भारत से मसालों. मोतियों, सुगन्धित वस्तुओं और सूतो वस्त्रों का निर्यात होता था और रोम से सोने का आयात होता था। डा. मोतीचन्द्र के अनुसार भी भारत से मोती, कपड़े, मसाले और कुत्ते रोम भेजे जाते थे और रोमवासी इनका मूल्य सुवर्णमुद्राओं में चुकाते थे । घोष का मत है कि रोम से प्रतिवर्ष लगभग ५००,०० पौंड के मूल्य बराबर ५०,०००,००० संस्टर्स भारत में आते थे। मथुरा से प्राप्त रोम के स्वर्ण-सिक्के इस तथ्य की पुष्टि करते
१. उत्तराध्ययनटीका, पृष्ठ ६४ २. सूरि उद्योततसूरि-कुवलयमालाकहा, पृ० १३२ ३. बावेरु जातक-आनन्द कौसल्यायन, जातककथा, १/२९० ४. कुवलयमालाकहा, पृष्ठ ६६ ५. संघदासगणि-वसुवहिण्डी भाग २ पृ० ३०९ ६. कालिदास कुमारसंभव ७/३ ७. मैती एस० के०-इकोनामिक लाइफ इन इण्डिया इन गुप्ता पीरियड,
पृष्ठ १३८ ८. मोतीचन्द्र-सार्थवाह, पृष्ठ १२५ ९. धोष नरेन्द्र नाथ-अर्ली हिस्ट्री आफ इंडिया, पृष्ठ ४/१