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क्रय के लिये अग्रिम धन
भगवती सूत्र से ज्ञात होता है कि व्यापारी वस्तु क्रय हेतु अग्रिम धन ( बयाना) देकर अपनी वस्तु सुरक्षित भी कर लेते थे ।' प्रश्नव्याकरण में भी मधु क्रय करने के लिये भीलों को अग्रिम धन देने का उल्लेख है । आवश्यकचूर्णि से ज्ञात होता है कि हाथी दांत क्रय करने के लिये पुलिंदों को अग्रिम धन दिया जाता था । जातककथाओं में भो व्यापार के लिये अग्रिम धन देने के उल्लेख मिलते हैं ।
पंचम अध्याय : १०९
मूल्य-निर्धारण
आज की ही भांति मांग और पूर्ति के अनुसार वस्तुओं के मूल्य निश्चित किये जाते थे । जिस वस्तु की मांग अधिक और पूर्ति कम हो पाता था उस वस्तु का मूल्य बढ़ जाता था । उत्सवों और पर्वों पर मांग के अनुसार वस्तुओं के उपलब्ध न हो पाने से उनके मूल्य बढ़ जाते थे ।" बृहत्कल्पभाष्य से ज्ञात होता है कि संखडी सामूहिक भोज एवं मेला के अवसर पर दूध का मूल्य बढ़ जाता था । इसी प्रकार इन्द्रमहोत्सव के समय फूलों और फूल-मालाओं की अत्यधिक मांग होती थी इस कारण उन दिनों उनके मूल्य में बहुत वृद्धि हो जाती थी । बृहत्कल्पभाष्य में एक माली का उल्लेख हुआ है जिसने इन्द्रमहोत्सव के कुछ दिन पूर्व ही अपनी फुलवारो से फूल चुनना बन्दकर दिया था ताकि वह उत्सव वाले दिन अधिकाधिक फूल ऊँचे मूल्य पर बेचकर अधिक लाभ अर्जित कर सके । सुलभता और दुर्लभता के आधार पर मरकत, पद्मराग आदि रत्नों का मूल्य निर्धारित किया जाता था । निशोथचूर्णि से सूचना मिलती है कि ऋतु के अनुसार भी वस्तुओं का मूल्य घटता-बढ़ता रहता था, ग्रीष्म ऋतु में महीन वस्त्र, शरद ऋतु में कम्बल और वर्षा ऋतु में कुकुम से रंगे वस्त्र
१. भगवती सूत्र ५ / ६ / ६
२. प्रश्नव्याकरण २/१३
३. आवश्यकचूर्णि भाग २, पृ. १५४
४. चुल्लसेठी जातक, आनन्द कौसल्यायन, जातककथा १/१५१
५. बृहत्कल्पभाष्य भाग २, गाथा १५९१
६. वही भाग २, गाथा १५९१
७. वही भाग २, गाथा १५९१ ८. वही भाग ४, गाथा ४२१६