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________________ 396 / Jijnāsā 1 विशेषकर गनेड़ी वाला सेठों को गनेड़ीवाला सेठों का परिवार बहुत विख्यात एवं समृद्धिशाली रहा है। गनेड़ीवाला सेठों के पूर्वज हरियाणा से बाजोर नामक स्थान पर बसे थे जो एक पुराना गांव है। शेखावाटी के रैवासा, बाजोर, कासली, रघुनाथगढ़, सांगरवा, शोभावती नदी का तट प्रदेश शांकभरी के पर्वत के दोनों ओर का भू-भाग चन्देल राजपूतों के अधिकार में रहा है। बाजोर, सीकर से चार मील दक्षिण में आजकल के सीकर-जयपुर राजमार्ग पर पड़ता है उस समय बाजोर के पास रैवासा होकर गुजरने वाला मार्ग संभवतः रैवासा से पर्वतमाला के नीचे होता हुआ उत्तर की ओर निकल जाता था। बाजोर के पास काछोर की झील प्रसिद्ध है जहां नमक तैयार किया जाता है। रैवासा जिसे रतिवासा भी कहा जाता है प्राचीन समय में खलुवाणा नाम से प्रसिद्ध व्यापारिक स्थान था।" अनेकों व्यापारिक काफिले इस मार्ग से गुजरा करते थे। बिणजारों की सैंकड़ों बैलोवाली बालद इसी स्थान से गुजरती थी। रैवासा में आज भी इन बिनजारों के बनाये कुँए विद्यमान है यह उन काफिलों के रात्रि विश्राम का स्थान था गनेड़ीवाला सेठों के पूर्वज हरियाणा से आकर यहाँ बसे तो शायद व्यापार की विपुल सम्भावनाओं का उन्होंने पूरी तरह आकलन किया होगा । व्यापारिक मार्ग पर तथा नमक के उत्पादन का केन्द्र होने के कारण ही उन्होंने इस स्थान पर बसने का चुनाव किया। रैवासा और बाजौर में सेठों की अनेक विशाल हवेलियाँ आज भी विद्यमान है। बाजौर के बाद ये सेठ परिवार वृद्धि और व्यापार वाणिज्य में वृद्धि के लिये 1630 ई. में गनेड़ी में आकर बसे गनेढ़ी गांव सीकर सुजानगढ़ के बीच में सालासर से 11 किलोमीटर पहले आता है। एक ओर जोधपुर दूसरी ओर बीकानेर और तीसरी और आमेर राज्य था। तीन राज्यों के सीमान्त के कारण और व्यापारिक मार्गों के कारण इसका महत्व बढ़ गया था। उस समय सीकर राज्य का अस्तित्व नहीं था। ई. 1687 वि. 1744 में राव दौलतसिंह ने सीकर किले की नींव डाली ।" फतेहपुर कस्बे में सेठ रामगोपालजी गनेड़ीवाला द्वारा बनाई हुई भव्य छत्री है। देश के विभिन्न क्षेत्रों में गडीवाला सेठों ने व्यापारिक गद्दियाँ स्थापित थी। जिनके अन्तर्गत व्यापार-व्यवसाय का कार्य चलता था । मुकन्दगढ, रतनगढ़ को बसाने में भी गनेड़ीवालों का योगदान रहा है। | शेखावाटी के वीर बांकुरों के अलावा धनकुबेरों के सन्त महात्मा उदार समाजसेवी सरस्वती के साधक आदि लोगों ने शेखावाटी को एक गौरवपूर्ण पहचान दिलाई है यथा- बिरला, मोदी, सिंघानिया, पोद्दार, बजाज, पीरामल, सेक्सरिया, कानोडिया गोयनका, तोदी आदि इनका शिक्षा, उद्योग और जनकल्याणकारी क्षेत्रों में असाधारण योगदान है। आज इन कस्बों में गले में कैमरा लटकाकर विदेशी पर्यटक गली-गली में घूमते है । कभी मण्डावा के झोपड़ीनुमा होटल का आनन्द लेते है कभी गीदड़, डफ, नृत्य के साथ परम्परागत वेशभूषा पहनकर नाचते गाते है उनके मुंह से सुनने को मिलता है 'नाइस शेखावाटी । 1 सन्तों, सूरमाओं एवं संठों की जन्मभूमि होने के कारण शेखावाटी जग विख्यात है यहाँ दादूपंथी संतो, नामों एवं वैष्णव संतों के उपदेशामृत पान कर जन गण सदा सर्वदा धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत रहा है शेखावाटी के सेठ इस धरती की साहसी परम्परा का अनुसरण करते हुए दूरस्थ प्रदेशों में जाकर अपनी व्यावसायिक कुशलता का परिचय देते हुये डोर लोटा लेकर निकले और करोड़पति होकर लौटे है भारत के विभिन्न प्रदेशों की सांस्कृतिक एवं सामाजिक थातियों को धर्म कांटे पर तोलकर अपनाया है हवा के झोंकों से हड़बड़ाये नहीं है। अपनी जन्मभूमि में आकर दान-पुण्य न सार्वजनिक कार्यों में धन लगाकर जनप्रिय बने है शेखावाटी के सेठों के बनाये पक्के तालाब, प्याऊ, धर्मशालाएं एवं शिक्षण संस्थाएँ इसकी साक्षी है। मुकन्दगढ़ के कानोडिया, नवलगढ़ के पोद्दार, रामगढ़ के रूइया, फतेहपुर के चमड़िया, पिलानी के बिरला आदि सेठों ने उच्च शिक्षा का प्रारम्भ कर, शिक्षा की दृष्टि से उपादेय कार्य किया।
SR No.022813
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages236
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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