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________________ 170 / Jijnāsa उत्तर औपनिवेशिक काल में सांस्कृतिक विचारवाद को तो समर्थन मिलता ही था, पेंटागन की युद्धक नीतियों के लिए वह 'थिंक टैंक' का काम भी करता था। उल्लेखनीय है कि औपनिवेशिक भारत के राष्ट्रवादी बुद्धिजीवियों एवं राष्ट्रीय मुक्तिआंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेताओं पर ही नहीं, स्वाधीन भारत के कुछ मार्क्सवादी इतिहासकारों पर भी प्राच्यवादी विचार धारा का गहरा असर रहा है। सुमित सरकार ने भारतीय नवजागरण की उपलब्धियों को स्वीकार करते हुए भी उसके अन्तर्विरोधों के विषय में लिखा है कि 'राजा राममोहन राय और उनके समकालीनों ने अंग्रेजी शिक्षा की जोरदार पैरवी की जो अपनी प्रकृति से ही विखंडनकारी एवं निषेधात्मक थी।'16 सर सैयद अहमद खाँ का दृढ़ विश्वास था कि 'सुसंस्कृत इंग्लैण्ड की अंग्रेजी भाषा में रचित विज्ञान को मूल या अनुवाद में पढ़े बिना भारत में सुधार के लिए कटिबद्ध लोग कभी सभ्य नहीं हो सकते।'17 सुमित सरकार की दृष्टि में नवजागरण काल की इसी गलत समझ ने भारतीयों के मन में अंग्रेजी शासन के पुनीत-पावन मंतव्यों को लंबे समय तक जिलाये रखा।'18 तब की तुलना में आज की दुनिया में विचारों की भूमिका और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है। अब विचारहीन संघर्षों का स्थान सुविचारित संघर्षो ने ले लिया है। पूँजीवाद ने नयी वैचारिकी से अपनी विजय यात्रा शुरू की थी। एक बार अपनी विजय सुनिश्चित हो जाने के बाद उसका साम्राज्यवादी स्वरूप, इतिहास एवं विचारधारा में अपनी स्वीकृति के लिए उनके अंत, सामाजिक क्रांतियों के महावृतांतों की समाप्ति, नवजागरणकालीन मूल्यों की विदाई, लेखक साहित्य एवं विचारों की मृत्यु, सभ्यताओं का संघर्ष जैसे वैचारिकी का सृजन कर रहा है। दरअसल नागरिक समाज पर आर्थिक एवं राजनीतिक नियंत्रण पूरी तरह तब तक कायम नहीं हो पाता, जब तक उनके अर बौद्धिक एवं सांस्कृतिक नियंत्रण न स्थापित कर लिया जाये और इस प्रकार चेतना के सभी क्षेत्रों पर उसकी पकड़ न सुनिश्चित हो जाये। इसलिए आज के भूमंडलीकरण की चुनौतियों एवं उत्तरऔपनिवेशिक सैद्धांतिकी के अध्ययन के अलग-अलग कालखंडों में स्वयं विश्वपूँजीवाद की वैचारिक भूमिका को ध्यान में रखना आवश्यक है, ताकि उसके बदलते हुए रूप को ठीक-ठाक पहचाना जा सके क्योंकि आज वह जिस विचार-चिंतन को जन्म देकर अपनी उन्नत प्रौद्योगिकी से उसकी पकड़ को हमारे मस्तिष्क पर सुनिश्चित कर रहा है, उसके प्रभावक्षेत्र से बाहर निकलना हमेशा आसान नहीं होगा। तभी यह स्पष्ट हो सकेगा भूमंडलीकरण एवं बहुलवादी संस्कृति की सुरक्षा एवं संरक्षण के पक्ष में जो तर्क और सिद्धान्त गढ़े गए हैं वे उत्तर औपनिवेशिक दौर में नव आर्थिक साम्राज्यवाद की सुरक्षा और संरक्षण के पक्ष में गढ़े गए तर्क और सिद्धान्त है और उनके सिद्धांतकार हेनरी किसिंगर, टॉमस एल फ्रीडमैन, फ्रांसिस फूकोयामा, मैल्कम वाटर्स, ज्याँ फ्रांसिस ल्योटार्ड आदि सामाजिक क्रांतियों एवं शास्त्रीय पूँजीवाद के सर्वमान्य सिद्धांतों और वर्गसंघर्ष के सार्वजनीन मार्क्सवादी सिद्धांतों को क्यों नहीं स्वीकारते हैं। ___इस संदर्भ में अर्ट मेंडल के विचार ध्यान देने योग्य हैं। अपनी महत्त्वपूर्ण पुस्तक 'लेट कैपिटलिज्म' में मेंडल ने आज बहुराष्ट्रीय निगमों वाले पूँजीवाद को विश्व पूँजीवाद के विकास का तीसरा चरण बताया है और उसे आज से पहले के किसी भी पूँजीवादी समाज की तुलना में पूँजीवाद का विशुद्धतम रूप कहा है। मेंडल की दृष्टि में पूँजीवादी विकास के निर्णायक दौरों का सीधा संबंध ऊर्जा प्रौद्योगिकी में हुए मूलगामी परिवर्तनों से है। उन्होंने 18वीं सदी से लेकर आज तक पूँजी और प्रौद्योगिकी के संयुक्त विकास के तीन गुणात्मक उछालों की ओर संकेत किया है और उसे स्वयं पूँजीवादी विकास के अलग-अलग दौरों से जोड़ा है। पहला है, 1848 से 1890 तक वाष्पशक्ति द्वारा उत्पादन। दूसरा है, 1890 से 1940 तक विद्युत दाह्य संयंत्रों द्वारा उत्पादन। तीसरा है, 1940 से आज तक परमाणु विद्युत संयंत्रों द्वारा उत्पादन जो स्वयं पूँजी के विकास के तीन महत्वपूर्ण दौरों का सूचक हैं: औद्योगिक पूँजी, महाजनी पूँजी एवं अन्तर्राष्ट्रीय वित्त पूँजी जिसे वह बहुराष्ट्रीय निगमों वाला विशुद्ध पूँजीवाद कहते हैं। मेंडल बताते हैं कि पूँजी और प्रौद्योगिकी का हर अगला चरण अपने पिछले चरण का स्वाभाविक विकास है। मेंडल ने जिसे पूँजीवाद का विशुद्धतम रूप कहा है वह बहुराष्ट्रीय निगमों वाला पूँजीवाद है। आज जिसे प्राय: उपभोक्तावादी समाज, मीडिया सोसाइटी या मीडिया बूम, तापनाभकीय विद्युत युग, उच्च प्रौद्योगिकीय समाज कहते हैं वे सब पूँजी और प्रौद्योगिकी के संयुक्त विकास की एक निश्चित मंजिल की ओर संकेत करते हैं। डेनियल बेल ने बहुत पहले उसे उत्तरऔद्योगिक समाज कहा था। भूमंडलीकरण से अभिप्राय इसी बहुराष्ट्रीय निगमों वाले पूंजीवाद के भूमंडलीकरण से है जिसका गुणधर्म मेंडल के शब्दों में 'कार
SR No.022812
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages272
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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