SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री कृष्ण का नैतिक चिन्तन एवं दर्शन / 79 परमज्ञान की प्राप्ति का ऐसा उच्चस्तरीय प्रामणिक शास्त्रीय विवेचन अन्यत्र दुर्लभ है। अत: यह कथन ठीक ही है कि 'यह उद्धव गीता रूप ज्ञानामृत आनन्द महासागर का सार है जो श्रद्धा के साथ इसका सेवन करता है वह तो मुक्त हो ही जाता है, उसके सङ्ग से सारा जगत् मुक्त हो जाता है। “य एतदानन्द्रसमुद्रसम्भृतं ज्ञानाम्रताय भागताय भाषितम्। कृष्णेन योगेश्वरसेविताधि रुच्छूद्धयाऽऽसेव्य जगद्विमुच्यते।।" - भागवत महापुराण 11.29.481 इस गीता के अन्तर्गत पाँच लघु गीताएँ-(पिङ्गलागीता, भिक्षुगीता, अवधूतगीता, ऐलगीता तथा हंसगीता")। अन्तर्गर्भित हैं। इस प्रकार श्रीकृष्ण के नैतिक चिन्तन एवं दर्शन की सार्वभौमिकता एवं सार्वकालिकता सिद्ध होती है तथा उनका जगदगुरुत्व भी निर्विवाद रूप में सिद्ध होता है। श्रीकृष्ण और कुटिलनीति श्री कृष्ण ने अनेक स्थलों पर शत्रुनाश के उपाय में कुटिलता का आश्रय लिया है, तो परिस्थितिवश कुटिलनीति के व्यावहारिकपक्ष की आवश्यकता को सुदृढ़ करता है। राजनीति के आचार्य शुक्र ने तो स्पष्टत: श्रीकृष्ण को कूटनीतिक माना है "न कूटनीतिरभवच्छीकृष्णसदृशो नृपः। अर्जुनं ग्राहिता स्वस्य सुभद्रा भगिनी छलात्।।" - शुक्रनीति 5.54 वस्तुत: श्री कृष्ण के समान कपटी कोई नहीं हुआ जिसने अपनी भगिनी सुभद्रा को छल से अर्जुन के लिए ग्रहण करवा दी। वस्तुत: राजनीति के चार उपायों-साम, दान, भेद तथा दण्ड के असिद्ध होने पर तीसरे को तथा तीसरे के असिद्ध होने पर युद्ध करना चाहिए जिसमें कुटिलनीति पूर्णत: धर्मसम्मत स्वीकार्य हो जाती है। वैशम्पायन का यही आशय प्रतीत होता है “साम्ना दानेन भेदेन समस्तैरथवा पृथक् । साधितुं प्रयतेतारीन्न युद्धेन कदाचन।।" शत्रु के नाश हेतु जब युद्ध के अलावा कोई विकल्प नहीं हो तब सभी कुटिल उपायों को भी प्रयोग न्याय्य हो जाता है। स्वयं भगवान् का चरित इस बात का साक्षी है। त्रिविक्रम जब वामन का कपटी रूप धारण करते हैं, शूकर भी बन जाते हैं तथा नृसिंह भी बनते हैं. इनसे सिद्ध होता है अन्तिम उपाय के रूप में निन्दनीय उपायों को भी धारण करना चाहिए "त्रिविक्रमोऽभूदपि वामनोऽसौ सशूकरश्चेति स वै नृसिंहः। नीचैरनीचैरतिनीचनीचैः सर्वैरुपायैः फलमेव साध्यम्।।" (नीतिशास्त्र का सर्वेक्षण में उद्धृत, पृ. 59) अत: कुटिल नीति की भी युद्ध आदि विशेष परिस्थिति में प्रासङ्गिकता सिद्ध होती है। महाभारत के युद्ध में भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, कीचक तथा दुर्योधन, जयद्रथ आदि के वध में कूटनीति का प्रयोग हुआ है। राम ने बालि बध में कूटनीति का प्रयोग किया। इस प्रकार श्रीकृष्ण भी धर्म संस्थापनार्थ विशेष परिस्थिति दें इस कुटिल नीति के आश्रय लेने से इसके समर्थक माने जा सकते हैं।
SR No.022812
Book TitleJignasa Journal Of History Of Ideas And Culture Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVibha Upadhyaya and Others
PublisherUniversity of Rajasthan
Publication Year2011
Total Pages272
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy