SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 51 काल-विभाजन एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि आचार्यों के अनुरूप जैन साधकों ने आध्यात्मिक किंवा रहस्य भावनात्मक साधना की। उत्तरकाल में वे वैदिक संस्कृति से कुछ रूप लेकर साधना - क्षेत्र में उतरे । ३. सामाजिक पृष्ठभूमि मध्यकाल का समाज वर्ण व्यवस्था की कठोर भित्ति पर खड़ा था। उच्च वर्ण से निम्न वर्ण की ओर जाने की तो व्यवस्था थी, पर निम्न वर्ण से उच्च वर्ण की ओर नहीं । शब्द मात्र जाति का सूचक नहीं रहा बल्कि उसे निम्न कोटि के व्यक्ति का प्रतीक माना जाने लगा। इस काल की स्मृतियों में सामाजिक नियमों का विधान किया गया । मुस्लिमों के आक्रमणों के कारण सामाजिक कट्टरता और अधिक बढ़ती गई। इसके बावजूद भारतीयता के नाते किसी में उसका विरोध करने की क्षमता नही रही । इस्लाम में जातिगत विभिन्नता होते हुए भी सामाजिक व्यवस्था से असन्तुष्ट व्यक्तियों के लिए इस्लाम का सहारा मिल गया। इस समय धार्मिक स्वतंत्रता पर्याप्त रूप से दिखाई देती है । कोई भी व्यक्ति किसी धर्म को अंगीकार करने के लिए स्वतन्त्र था। इसके बावजूद स्मृतिगत वर्ण व्यवस्था को अधिक रूप से स्वीकार किया गया। अनुलोम, प्रतिलोम विवाह भी होते थे। सती प्रथा भी उस समय प्रचलित थी । बहुपत्नीत्व प्रथा होने से नारी की स्थिति दयनीय थी। उच कुलों में परदा प्रथा भी थी । कृषि कर्म प्रमुख व्यवसाय था और विशेषकर शूद्र वर्ग उसे किया करता था । सामाजिक रूढ़ियां विश्रृंखलित हो रही थीं। ज्ञानाश्रयी और प्रेमाश्रयी संतों ने भी सामाजिक बंधन तोड़ने तुड़ाने का साहस किया। इतने पर भी समाज
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy