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संदर्भ अनुक्रमणिका ३८८. उत्तराध्ययन, २०:३७; हिन्दी पद संग्रह, पृ. ३६ । ३८९. पंचास्तिकाय, १६२; नाटक समयसार, संवरद्वार, ६, पृ. १२५ । ३९०. सन्तो, धोखा कांसू कहिये। गुण में निरगुण निरगुण में गुण। बाँट छाडि क्यूं
कहिये? कबीर ग्रंथावली, पद १८०। ३९१. जैन शोध और समीक्षा - पृ. ६२। ३९२. परमात्मप्रकाश, १-२५। ३९३. पाहुड़दोहा, १००। ३९४. परमात्म प्रकाश, १-१९। ३९५. बनारसीविलास, शिवपच्चीसी, १-२५। ३९६. कबीर ग्रन्थावली, पृ. १६६। ३९७. वही, पृ.१५१। ३९८. वही, पृ.११६। कबीर ग्रन्थावली, पृ.१४५। ३९९. नाटक समयसार, निर्जरा द्वार, पृ. २१०।। ४००. कबीर ग्रन्थावली, पृ. २४१। वही, पृ.१००। ४०१. कबीर ग्रंथावली, परचा को अंग, १७। ४०२. बनारसी विलास, अध्यात्मगीत,१६। ४०३. कबीर-डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृ. १८७। ४०४. चूनड़ी, हस्तलिखित प्रति, अपभ्रंश और हिन्दी में जैन रहस्यवाद, पृ. ९४। ४०५. आनन्दघन बहोत्तरी, ३२-४१। ४०६. जोगिया कहां गया नेहड़ी लगाय। छोड़ गया बिसवास संघाती प्रेम की बाती
बराय। मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन रह्यो न जाई।। मीरा की प्रेम साधना, पृ.१६८। दिन-दिन महोत्सव अतिधणा, श्री संघ भगति सुहाइ। मन सुद्धि श्री गुरुसेवी यह, जिणी सेव्यइ शिव सुख पाइ।। जैन ऐतिहासिक काव्य संग्रह
कुशल लाभ-५३ वांपद। ४०८. अध्यात्म गीत, बनारसी विलास, पृ.१५९-६०। ४०९. भूधर विलास, ४५ वां पद पृ. २५। ४१०. कवि विनोदीलाल-बारहमासा संग्रह कलकत्ता, ४२ वां पद्य, पृ. २४,
लक्ष्मीवल्लभ नेमि-राजुल बारहमासा, पहला पद्य।
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