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________________ 466 २३. ३१. हिन्दी जैन साहित्य में रहस्यभावना २२. बनारसीदासविलास, प्रास्ताविक फुटकर कवित्त, पृ. १२। हिन्दी पद संग्रह, पृ.१५२। २४. दादू की वानी, भाग २, पृ. ९४। हिन्दी पद संग्रह, पृ. १५२। २६. वही, १५८। २७. दादू की वानी, भाग २, पृ. ९४। २८. कबीर ग्रंथावली, पृ. ३४६। दौलत जैन पद संग्रह, पृ.११. पद १७ वां। संत वाणी संग्रह, भाग २, पृ. १२४। क्षणभंगुर जीवन की कलियाँ कल प्रात को जानै खिली न खिलीं। मलयाचल की शुचि शीतल मन्द सुगन्ध समीर मिली न मिली। कलि काल कुठार लिए फिरता तनु नम्र है चोट झिली न झिली। करि ले हरि नाम अरी रसना फिर अंत समे पै हिल न हिली।। भगवंत भजन क्यों भूला रे।। यह संसार रैन का सुपना, तन धनवारि बबूला रे।। इस जीवन का कौन भरोसा, पावक में तृण फूला रे। स्वारथ साधै पांच पांव तु, परमारथ को भूला रे। कहु कैसे सुख पैहैं प्राणी काम करै दुखमूला रे।। मोह पिशाच छल्यो मति मारै निजकर कंध वसूला रे। भज श्री राजमतीवर 'भूधर' दो दुरमति सिर धूलारे।। हिन्दी पद संग्रह, पृ. १५७। कबीर ग्रंथावली, पदावली भाग, ९२ वां पद, पृ. ३४६। ३४. ब्रह्मविलास, अनित्य पचीसिका, ४१, पृ. १७६। जैन साधकों द्वारा शरीर चिन्तन को विस्तार से इसी प्रबन्ध के द्वितीय-पंचम परिवर्त में देखिए। कबीर-डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी, पद्य १३०, पृ. ३०९ । सन्त वाणी संग्रह, भाग २, पृ.४। हिन्दी पद संग्रह, पद १५६, पृ. १३०। इन्द्रो मायाभिः पुरुरूप ईयते, ऋग्वेद ६.४७.१८। __ अस्मान्मायी सृजते विश्वमेतत् तस्मिश्चान्योमायया संनिरुद्धः, श्वेताश्वतरोपनिषद् ४.९। मिच्छत वेदंतो जीवो, विवरीयदसणो होई। णय धम्मं रोचेदि हु, महुर पि रसंजहा जरिदो, पंचसंग्रह, १.६: तु. उत्तराध्ययन, ७.२४। ३२. ३३.
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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