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संदर्भ अनुक्रमणिका १३५. श्री चूनरी, इसकी हस्तलिखित प्रति मंगोरा (मथुरा) निवासी पं. कल्लभ
राम जी के पास सुरक्षित है, अपभ्रंश और हिन्दी में जैन रहस्यवाद, पृ.९०। १३६. विशम विरण पूरा भयो हो, आयो सहज वसंत। प्रगटी सुरुचि सुगन्धिता हो,
मन मधुकर मयमंत।। अध्यातम विन क्यों पाइये हो।।२।। सुमति कोकिला गह गही हो वही अपूरब वाउ। भरम कुहर बादर फटे हो' घट जाडो जड़ ताउ।।अध्यातम।।३।। मायारजनी लघु भई हो' समरस दिवशशि जीत। मोह पंक की थिति घटी हो; संशय शिशिर व्यतीत।।अध्यातम।।४।। शुभ दल पल्लव लहलहे हो' होहि अशुभ पतझार। मलिन विषय रति मालती हो' विरति वेलि विसतार ।।अध्यातम।।५।। शशिविवेक निर्मल भयो हो, थिरता अभय झकोर। फैली शक्ति सुचन्द्रिका हो, प्रमुदित नैम-चकौर ।।अध्यातम।।६।। सुरति अग्नि ज्वाला लगी हो' समकित भानु अमन्द। हृदय कमल विकसित भयो हो' प्रगट सुजश मकरन्द ।।अध्यातम।।७।। दिढ कषाय हिमगिर गले हो नदी निर्जरा जोर। धार धारण बह चल हो शिवसागर मुख और ।।अध्यातम०।।८।। वितथ वात प्रभुता मिटी हो जग्यो जथारथ काज। जंगलभूमि सुहावनी हो नृप वसन्त के राज
।।अध्यातम०।।९।। बनारसीविलास, अध्यातम फाग २-६पं.१५४।। १३७. गौ सुवर्ण दासी भवन गज तुरंगे परधान। कुलकतंत्र तिल भूमि रथ ये पुनीत
दशदान।।वही, दसदान,१५.१७७। १३८. बनारसीविलास, अध्यातम फाग, १८, पृ. १५५-१५६। १३९. अक्षर ब्रह्म खेल अति नीको खेलत ही हुलसावै-हिन्दी पद संग्रह, पृ. ९२। १४०. माहवीरजी अतिशय क्षेत्र का एक प्राचीन गुटका, साइज ८-६, पृ. १६०;
हिन्दीजैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. २५६। आयो सहज वसन्त खेलै, सब होरी होरा।। उत बुधि देया छिमा बहुणढ़ी, इत जिय रतन सजे गुनन जोरा।। ज्ञान ध्यान उफ ताल बजत है अनहद शब्द होत घनघोरा।। धरम सुराग गुलाल उड़त है, समता रंग दुहं ने घोरा ।।आयो०।।२।। परसन उत्तर भरि पिचकारी, छोरत दोनों कटि कटि जोरा।। इत” कहैं नारि तुम काकी, उत” कहैं कौन को छोरा ।।३।। आठ काठ अनुभव पावक में, जल बुझ शांत भई सब ओरा।। द्यानत शिव आनन्द चन्द छबि, देखे सज्जन नैन चकोरा।।४।। हिन्दी पद संग्रह, पृ. ११९।
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