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________________ 461 संदर्भ अनुक्रमणिका १०६. बनारसीविलास, ज्ञानवावनी, ३४, पृ.८४ । १०७. नाटक समयसार, निर्जरा द्वार, पृ. १४१। १०८. नाटक समयसार, सर्वविशुद्धिद्वार, ८२, पृ, २८५।। १०९. १. जाप-जो कि बाह्य क्रिया होती हैं २. अजपाजाप-जिसके अनुसार साधक बाहरी जीवन का परित्याग कर आभ्यांतरित जीवन में प्रवेश करता है, ३. अनहद जिसके द्वारा साधक अपनी आत्मा के गूढ़तम अंश में प्रवेश करता है, जहां पर अपने आप की पहचान के सहारे वह सभी स्थितियों को पार कर अंत में कारणातीत हो जाता है। ११०. हिन्दी पद संग्रह, पृ. ११९। १११. वही, पृ. ११८, आओ सहजवसन्त खेलें सव होरी होरा।। अनहद श्बद होत घरघोरा।। (वही, पृ. ११९-२०)। ११२. धर्मविलास, पृ, ६५, सोहं निज जपै, पूजा आगमसार। सत्संग में बैठना, यही करै ब्यौहार।। (अध्यात्मपंचासिका दोहा, ४९) । ११३. आसा मारि आसन घरि घट में, अजपा जाप जगावै। आनंदघन चेतनमयमूरति, नाहि निरंजन पावै।। (आनंदवन बहोत्तरी, पृ. ३५९। ११४. आनंदघन बहोत्तरी पृ, ३९५; अपभ्रंश और हिन्दी जैन रहस्यवाद, पृ. २५५। ११५. वही, पृ. ३६५। ११६. कबीर की विचारधारा-डॉ. गोविन्द त्रिगुणायत, पृ, २२६-२२८ । ११७. कबीर साहित्य का अध्ययन, पृ. ३७२। ११८. सह एरी ! दिन आज सुहाया मुझ भया आया नहीं धरे। सही एरी ! मन उदधि अनंदा सुख-कन्दा चन्दा धरे। चन्द जिवां मेरा बल्लभ सोहे, नैन चकोरहिं सुक्ख करे। जग ज्योति सुहाईकीरति छाई, बहुदुख तिमिर वितान हरे। सहु काल विनानी अमृतवानी, अक मृग का लांछन कहिये। श्री शांति जिनेश नरोत्तम को प्रभु, आज आज मिला मेरी सहिये। बनारसीविलास, श्री शांतिजिन स्तुति, पद्य १, पृ. १८९।
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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