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६४. हिन्दी
संदर्भ अनुक्रमणिका ६३. अद्भुत रूप अनूपम महिमा तीन लोक में छाजै। जाकी छवि देखत इन्द्रादिक
चन्द्र सूर्य गण लाजै।। अरि अनुराग विलोकत जाकों अशुभ करम तजि भाजै। ___ जो जगराम बनै सुमरन तो अनहद बाजा बाजै।। दि. जैन मन्दिर, बड़ौत में
सुरक्षित पद संग्रह, हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. २५७।
हिन्दी पद संग्रह, पृ.१८४। ६५. दौलत जैन पद संग्रह, ४३ वां पद, पृ. २५। ६६. बुधजन विलास, ५७ वां पद, पृ.३०। ६७. सीमन्धर स्वामी स्तवन, विनयप्रभ उपाध्याय, पृ. १२०-२४। ६८. चतुर्विशती जिनस्तुति, जैन गुर्जर कविओ, तृतीय भाग, पृ. १४७९ । ६९. गर्भ विचार स्तोत्र, २७ वां पद्य। ७०. विमलनाथ, जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. ९४। ७१. पार्श्वजिनस्तवन-गुणसागर, जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. ९५। ७२. गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवन-कुशललाभ, जैन गुर्जर कविओ, प्रथम भाग,
पृ. २१६ अन्तिम कलश। ७३. कुअरपाल का पद। कवि की अनेक रचनायें सं. १६८४-१६८५ में लिखे एक
गुटके में निबद्ध हैं जो की श्री अगरचन्द नाहटा को उपलब्ध हुआ था। ७४. भूपाल स्तोत्र छप्पय, दूंणी, जयपुर का जैन शास्त्र भण्डार, हिन्दी जैन भक्ति
काव्य और कवि, तृ.३८९। ७५. नाटक समयसार, चतुर्दशगुणस्थानाधिकार, पृ. ३६५। ७६. दौलतजैन पद संग्रह, ४३,१११, ११२वें पद्य।
बुधजन विलास, ११७, पृ. ६०। ७८. हिन्दी पद संग्रह, पृ.१४ और २०। ७९. वही, पृ. ४०। ८०. वही, पृ.१०९। ८१. वही, पृ. १८१-८२। ८२. प्रभु मेरे तुमकू ऐसी न चाहिए। सधन विधन घेरत सेवक कु, मौन धरी किऊं
रहिये।।१।। विधन हरन सुखकरन सबनिकुंचित चिन्तामनि कहिये। असरण शरण अबंधुबंधु कृपासिन्धु को विरद निबहिये। हिन्दी पद संग्रह, भ. कुमुदचन्द्र, पृ. १४, लूणकरणजी पाण्डया मन्दिर, जयपुर के गुटक नं. ११४ में सुरक्षित पद।
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