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________________ १५०. संदर्भ अनुक्रमणिका 455 १४३. जैनशोध और समीक्षा, पृ. १३२, नाटक समयसार, निर्जराद्वार, ३४। १४४. ब्रह्मविलास, पुण्यपचीसिका, ८-१० पृ. ३-४ । १४५. विरच्छ के जर वर महल के नींव जैसे, धरम की आदि तैंसे सम्यकदरश है। या विन प्रशमभाव श्रुतान वृत तप, विवहार होत है न आतम परस है।। जैसे विन बीज अख साधन न अन्न हेत, रहत हमेश परज्ञेय को तरस है।।२७।। मनमोदन, २७, पृ.१३। १४६. हिन्दी पद संग्रह, पृ.१४७। १४७. नाटक समयसार, सर्वविशद्धि द्वार, ८२-८५। १४८. देहा परमार्थ, ५८-६२, बधीचन्द मंदिर, जयपुर के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित। १४९. हिन्दी पद संग्रह, द्यानतराय, पृ.१०९-१४१। हिन्दी पद संग्रह, द्यानतराय, पृ.१०९-१४१ । १५१. जबलों रागद्वेष नहिं जीतय तबलों, मुकति न पावै कोइ। जबलों क्रोधमान मनधारत, तबलों सुगति कहो ते होइ।। जबलों माया लोभ बसे उर, तबलो सुख सुपनै नहिं जोइ। एअरिजीत भयो जो निर्मल, शिव संप्रति विलसत है सोइ।।४५।। ब्रह्मविलास, शत अष्टोत्तरी, ४५, पृ.१८। १५२. निजनिधि पहिचानी तब भयो ब्रह्मज्ञानी, शिवलोक की निशानी आप में घरी-घरी।। वही, सुबुद्ध चौबीसी; १२ पृ.१६। १५३. पद संग्रह, दि. जैन मंदिर वडौत, ४९, हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. २६३। वही, पन्ना ४९, दि. जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. २६३। सप्तम परिवर्त बनारसी विलास, जिनसहस्रनाम। भगवद्गीता, २७.४। श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्।। श्रवन कीरतन चितवन सेवन बन्दन ध्यान। लघुता समता एकता नोधा भक्ति प्रमान।। नाटक समयसार, मोक्षद्वार, ८, पृ. २१७। आनुकूल्यस्य संकल्पः प्रातिकूल्यस्य वर्जनम्। रक्षिष्यतीति विश्वासो गोप्तृत्ववरणं तथा। आत्म निक्षेपकार्पण्ये षड्विधा शरणागतिः।।" १५४. air in x i
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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