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________________ 367 रहस्य भावनात्मक प्रवृत्तियों का तुलनात्मक अध्ययन २. साधक तत्त्व १. सद्गुरु और सत्संग साधना की सफलता और साध्य की प्राप्ति के लिए सद्गुरु का सत्संग प्रेरणा का स्रोत रहता है। गुरु का उपदेश पापनाशक, कल्याणकारक शान्ति और आत्मशुद्धि करने वाला होता है। उसके लिए श्रमण और वैदिक साहित्य में श्रमण, आचार्यो, बुद्ध, पूज्य, धर्माचार्य, उपाध्याय, भन्ते, भदन्त, सद्गुरु, गुरु आदि शब्दों का पर्याप्त प्रयोग हुआ है। जैनाचार्यो ने अर्हन्त और सिद्ध को भी गुरु माना है और विविध प्रकार से गुरु भक्ति प्रदर्शित की हैं। इहलोक और परलोक में जीवों को जो कोई भी कल्याणकारी उपदेश प्राप्त होते हैं वे सब गुरुजनों की विनय से ही होते है। इसलिए उत्तराध्ययन में गुरु और शिष्यों के पारस्परित कर्तव्यों का विवचेन किया गया है। इसी सन्दर्भ में सुपात्र और कुपात्र के बीच जैन तथा वैदिक साहित्य भेदक रेखा भी खीची गई है।११५ जैन साधक मुनिरामसिंह और आनंदतिलक ने गुरु की महत्ता स्वीकार की है और कहा है कि गुरु की कृपा से ही व्यक्ति मिथ्यात्व रागादि के बंधन से मुक्त होकर भेदविज्ञान द्वारा अपनी आत्मा के मूलविशुद्ध रूप को जान पाता है। इसलिए उन्होंने गुरु की वन्दना की है। आनंदतिलक भी गुरु को जिनवर, सिद्ध, शिव और स्वपर का भेद दर्शाने वाला मानते हैं। जैन साधकों के ही समान कबीर ने भी गुरु को ब्रह्म (गोविन्द) से भी श्रेष्ठ माना है। उसी की कृपा से गोविन्द के दर्शन संभव है।" रागादिक विकारों को दूर कर आत्मा
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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