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रहस्यभावना के साधक तत्त्व करने के कारण महारुद्र हुए। मनोकामना का दहन करने से कामदहन कर्ता हुए। संसारी उन्हीं को महादेव, शंभु, मोहहारी हर आदि नाम से पुकारते हैं। यही शिवरूप शुद्धात्मा सिद्ध, नित्य और निर्विकार है, उत्कृष्ट सुख का स्थान है। साहजिक शान्ति से सर्वांग सुन्दर है, निर्दोष है, पूर्ण ज्ञानी है, विरोधरहित है, अनादि अनंत है इसलिए जगतशिरोमणि हैं, सारा जगत उनकी जय के गीत गाता है -
अविनासी अविकार परमरसधाम है । समाधान सर्वज्ञ सहज अभिराम है। सुद्ध बुद्ध अविरुद्ध अनादि अनन्त है । जगत शिरोमनि सिद्ध सदा जयवंत है ।।४।।
निहालचन्द ने भी सिद्ध रूप निर्गुण ब्रह्म को ओंकार रूप मानकर स्तुति की है। उन्हें वह रूप अगम, अगोचर, अलख, परमेश्वर, परमज्योति स्वरूप दिखा -
'आदि ओकार आप परमेसर परम जोति' अगम अगोचर अलख रूप गयौं है।
यह ओंकार रूप सिद्धों को सिद्धि, सन्तों को ऋद्धि, महन्तों को महिमा, योगियों को योग, देवों और मुनियों को मुक्ति तथा भोगियों को भुक्ति प्रदान करता है। यह चिन्तामणि और कल्पवृक्ष के समान है। इसके समान और कोई भी दूसरा मन्त्र नहीं - सिद्धन को सिद्धि, ऋद्धि देहि संतन को,
महिमा महन्तन को देन दिन माही है, जोगी कौ जुगति हूं, मुकति देव, मुनिन कू,
भोगी कुं भुगति गति मतिउन पांही है ।