SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 253 रहस्यभावना के साधक तत्त्व खरतर गच्छीय पहुराज को अपने गुरु जिनोदय सूरि के शील संयम ने बडा आकर्षित किया। कवि ने जिनोदय सूरि गुण वर्णन काव्य (सं. १४३१) में उनका वर्णन इस प्रकार किया है - कवणि कवणि गुणि थुणउं कवणि किणिमेय वखाणउं । थूलभद्द तुह सील लब्धि, गोयम तुह जाणउ । पाव पंक भउ मलिउ दलिउ कंदप्प निरुत्तउ । जिण मुनिवर सिरि तिलउ भविय कप्पयरु पहुत्तउ । जिण उदय सूरि मणहर रयण सुगुरु पट्टधर उद्धरण, पहुराज भणइ इम जाणिकरिफल मनवंछित सुहकरणु ।५। मानसिंह ने क्षुल्लक कुमार चौपइ (सं. १६७०) में सद्गुरु की संगति को मोक्षप्राप्ति का कारण माना है। उनका कहना है - श्री सद्गुरु पद जुग नमी, सरसति ध्यान धरेसु; क्षुल्लक कुमार सुसाधुना, गुण संग्रहण करेशु । गुणग्रहतां गुण पाइयइ, गुणि रंजइ गुणजाण, कमलि भ्रमर आवइ चतुर, दादुर ग्रह इन अजाण । गुणिजन संगत थइ निपुण, पावइ उत्तम ठाम, कुसुमसंग डोरो कंटक केतकि सिरि अभिराम । पहिलउ धर्म न संग्रहिउ, मात कहिइ गुरुवयण, नटुइवयणे जागीयइ, विकसे अंतरनयण । सोमप्रभाचार्य के भावों का अनुकरण कर बनारसीदास ने भी गुरु सेवा को ‘पायपंथ परिहरहिं धरहिं शुभपंथ पग' तथा 'सदा अवांछित चित्त जुतारन तरन जग' माना है सद्गुरु की कृपा से मिथ्यात्व का विनाश होता है। सुगति-दुर्गति के विधायक कर्मो के विधि-निषेध का ज्ञान होता है, पुण्य-पाप का अर्थ समझ में आता है, संसार-सागर
SR No.022771
Book TitleHindi Jain Sahityame Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushplata Jain
PublisherSanmati Prachya Shodh Samsthan
Publication Year2008
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy