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प्राक्कथन
स्वरूप, उसके बाधक एवं साधक तत्त्वों का विवेचन करते हुए जैन रहस्यभावना का सगुण, निर्गुण, सूफी व आधुनिक रहस्यभावना के साथ तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। उनका अध्ययन आलोचना एवं गवेषणा से संयुक्त है। पंचशताधिक जैन-जैनेतर कवियों की रचनाओं का आलोड़न-विलोड़नकर उन्होंने अपने जो निष्कर्ष दिये हैं वे प्रमाणपुरस्सर होने के साथ-साथ नवीन दृष्टि और चिन्तन लिये हुए
हैं
मुझे पूरा विश्वास है कि यह कृति हिन्दी काव्य की रहस्यधारा को समग्र रूप से समझने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगी।
डॉ. नरेन्द्र भानावत एसोशियेट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, राजस्थान विशवविद्यालय,
जयपुर
२३ अप्रेल, १९८४