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________________ ढाल आठवीं-जिन वचन वैरागियो हो छन्ना, यह देशी नमो उवज्झायाणं जपो हो मित्ता जेहना गुण पच्चवीश रे एकागर चित्ता ।। ए पद ध्यावो बे || ए पद ध्यावो ध्यानमा हो मित्ता, मूकी राग ने रीश रे ॥ एकां-१ ॥ अंग इग्यार पूरवधरा हो मित्ता, परिसह सहे बावीश ।। त्रण्य गुप्ति गुप्ता रहे हो मित्ता, भावे भावना पच्चवीश रे ।। एकां-२॥ अंग उपांग सोहामणां हो मित्ता, धरता जेह गुणीश ।। गणता मुख पद पद्म थी हो मित्ता, नंदी अणुयोग जगीश रे, एकागर चित्ता. ॥३॥ पंचम श्री साधुपद पूजा हवे पंचम पदे मुनिवरा, जे निर्मम निःसंग । दिन दिन कंचननी परे, दीसे चढते रंग ॥१३।। ढाल नवीं-रागवसंत मो मन भवन विशाल सांइयां, मो मन-यह देशी मुनिवर परम दयाल भवियां. ।मुनि।। तुमे प्रणमो ने भाव विशाल || भवियां । मुनिं । यह टेक ॥ कुक्षी संबल मुनिवर भाख्या, आहार दोष टाले बियाल ।। भवियां ।।मुनि ।। बाह्म अभ्यंतर परिग्रह छांडी, छांडी सवि जंजाल | भवियां. ॥मुनि. १॥ जिणे ए ऋषितुं शरणं कर्यु तिणे, पाणी पहेली बांधी पाल । भविया ! ॥ मुनि ॥ ज्ञान ध्यान किरिया साधंता, काढे पूर्वना काल ॥ भवियां ! ॥मुनि-२॥ संयम सत्तर प्रकारे आराधे, छ जीवना प्रतिपाल || भवियां ! ॥मुनिं । इम मुनिगण गावे ते पहेरे, सिद्धि-वधू वरमाल ।। भवियां ! ॥ मुनि. ॥३॥ दोहा ___पांचे इन्द्रिय वश करे, पाले पंचाचार । पंच समिति समिता रहे, वंदु ते अणगार ॥१४॥ ढाल दशवी-गिरिराजकुं सदा मोरी वंदना रे-यह देशी मुनिराजकुं सदा मोरी वंदना रे ॥मुनि. ॥ भोग वम्या ते मनशुं न इच्छे, नाग ज्यु होये अगंधना रे ॥मुनि. ॥ परिसह उपसर्गे स्थिर रहेवे, मेरुपरे निःकंपना रे ॥ मुनि.-१॥ इच्छा मिच्छा आवसिया निसीहिया तहकार ने वलि छन्दना रे ॥ मुनि.॥ पृच्छा प्रति-पृच्छा उपसंपदा, सामाचारी निमंतना रे ॥मुनि.-२ ॥ ए दशविध सामाचारी पाले, कहे पद्म लेउं तस भामणा रे ।मुनि. । ए ऋषिराज वन्दनथी होवे, भवभव पाप निकंदना रे । मुनिराजकुं ॥३॥ -508
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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