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________________ नित्य अप्रमत्त धर्म उवएसे, नहिं विकथा न कषाय । जेहने ते आचारज नमिये, अकलुष अमल अमाय रे । भविका ! सिद्ध ॥३॥ जे दिये सारण वारण चोयण, पडिचोयण वली जनने । पटधारी गच्छ थंभ आचारज ते मान्या मुनि मनने रे । भविका ! सिद्ध ॥४॥ ढाल ध्याता आचारज भला, महामंत्र शुभ ध्यानी रे । पंच प्रस्थाने आतमा, आचारज होय प्राणी रे ॥ वीर-१॥ श्री आचार्यपदकाव्यम् न तं सुंह देई पिया न माया, जे दिति जीवाणिह सूरीसपाया तम्हा हु ते चेव सया भजेह, जे मुक्खसुक्खाई लहुं लहेह ॥१॥ विमल केवल भासन भास्कर मंत्र ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते सूरये जलादिकं यजामहे स्वाहा । चतुर्थ श्री उपाध्यायपद पूजा काव्यं-इन्द्रवज्रावृत्तम सुत्तत्थ-वित्थारण-तप्पराणं, नमो नमो वायग-कुंजराणं । गणस्स साधारणसारयाणं, सव्व क्खणा वज्जियमंथराणं ।१। भुजंगप्रयातवृत्तम् नहि सूरि पण सूरिगणने सहाया, नमुं वाचका त्यक्त मद मोह माया । वली द्वादशांगादि सूत्रार्थ दाने, जिके सावधाना निरुद्धाभिमाने ॥१॥ धरे पंचने वर्ग वर्गित गुणौधा, प्रवादि द्विपोच्छेदने तुल्य सिंघा । गुणी गच्छ संधारणे स्तंभ भूता, उपाध्याय ते वंदिये चित्प्रभूता ॥२॥ ढाल, उलाला की देशी खंति जुआ मुक्ति जुआ, अज्जव मद्दव जुता जी । सच्चं सोयं अकिंचणा, तव संजम गुणरत्ता जी ॥१॥ 495
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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