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________________ ढाल रुपातीत स्वभाव जे, केवल दंसण नाणी रे । ते ध्याता निज आतमा, होय सिद्ध गुण खाणी रे ॥ वीर जिनेश्वर उपदिशे ॥१॥ काव्यम् : दुट्ठ कम्मावरण विमुक्के अनन्त नाणाइ सिरीचउक्के समग्ग लोगग्ग पयत्थ सिध्धे झाण्हं निच्चंपि समग्ग सिध्धे ॥१॥ विमल केवल भासन भास्कर मंत्र : ॐ हीं श्रीं परमपुरुषाद परमेश्वराय जन्म जरामृत्यु निवारणाय श्रीमते सिध्धाय जलादिकं यजामहे स्वाहा तृतीय श्री आचार्यपद पूजा सूरीण दूरीकय-कुग्गहाणं, नमो नमो सूर समप्पहाणं । सद्देसणादाण-समायराणं, अखंड छत्तीस गुणायराणं । नमुं सूरिराजा सदा तत्त्व ताजा, जिनेन्द्रागमे प्रौढ साम्राज्य भाजा । षड्वर्ग वर्गित गुणे शोभमाना, पंचाचारने पालवे सावधाना ॥१॥ भवि प्राणीने देशना देश काले, सदा अप्रमत्ता यथासूत्र आले । जिके शासनाधारदिग्दति कल्पा, जगे ते चिरंजीव जो शुद्ध जल्पा ॥२॥ ढाल, उलाला की देशी आचारज मुनिपति गणि, गुण छत्रीशी धामोजी । चिदानन्द रस स्वादता, परभावे निष्कामो जी ॥१॥ उलालो निष्काम निर्मल शुद्ध चिद्धन, साध्य निज निरधारथी । वर ज्ञान दर्शन चरण, वीरज, साधना व्यापारथी ॥ भविजीव बोधक तत्त्व शोधक, सयल गुण संपत्तिधरा । संवर समाधि गत उपाधि, दुविध तपगुण आगरा ॥२॥ पूजाढाल श्रीपाल केरास की देशी पंच आचार जे सूधा पाले, मारग भाखे साचो । ते आचारज नमिये नेहशुं, प्रेम करीने जाचो रे ॥ भविका ! सिद्ध ॥१॥ वर छत्रीश गुणे करी सोहे, युगग्रधान जन मोहे । जग बोहे न रहे खिण कोहे, सूरि नमुं ते जोहे रे । भविका ! सिद्ध ॥२॥ -494
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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