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________________ इंदु वसु निधि भू वरषे (१९८१) पूजा रचना करी हरषे ॥सिरि ॥९॥ चाहुं सिद्धचक्र की सेवा, करी मुक्ति तणा मेवा ॥ कहे लब्धि सूरि देवा, करो अब पार मुज सेवा ॥ सिरि ॥१०॥ इति श्री नवपद पूजा समाप्ता श्रीमद् यशोविजयजी उपाध्याय रचित श्री नवपद पूजा प्रथम श्री अरिहंत पद पूजा काव्यम् : उप्पन्नसन्नाण-महोमयाणं, सप्पाडिहेरासण-संठियाणं सद्देसणा-णंदियसज्जणाणं, नमो नमो होउ सया जिणाणं ॥ उपजातिवृत्तम् ॥ __नमोऽनंत संत प्रमोद प्रदान - प्रधानाय भव्यात्मने भास्वताय । थया जेहना ध्यानथी सौख्यभाजा, सदा सिद्धचक्राय श्रीपाल राजा ॥१॥ ___ कर्या कर्म दुर्मर्म चकचूर जेणे, भला भव्य नवपद ध्यानेन तेणे । करी पूजना भव्य भावे त्रिकाले, सदा वासियो आतमा तेणे काले ॥२॥ जिके तीर्थकर कर्म उदये करीने, दिये देशना भव्यने हित धरीने । सदा आठ महा पाडिहारे समेता, सुरेशे नरेशे स्तव्या ब्रह्मपुत्ता ॥३॥ कर्या घातियां कर्म चारे अलग्गां, भवोपग्रही चार जे छे विलग्गा । जगत पंच कल्याणके सौख्य पामे, नमो तेह तीर्थंकरा मोक्ष कामे ॥४॥ ढाल, उलालाकोदेशी तीर्थपति अरिहा नमुं, धर्म धुरंधर धीरो जी । देशना अमृत वरसता, निज वीरज वड वीरो जी ॥१॥ उलालो वर अक्षय निर्मल ज्ञानमासन, सर्वभाव प्रकाशता । निज शुद्ध श्रद्धा आत्ममावे, चरण थिरता वासता ।। जिननाम कर्मप्रभाव अतिशय, प्रातिहारज शोभता । जगजंतु करुणावंत भगवंत, भविक जनने थोभता ॥१॥ ढाल, श्रीपाल केरास की देशी त्रीजे भव वर स्थानक तप करी, जेणे बांध्यं जिन नाम । चोसठ इन्द्रे पूजित जे जिन, कीजे तास प्रणाम रे । भविका ! सिद्धचक्र पद वंदो, वंदी ने आनंदो रे, नावे भव भय फंदो रे, टाले भवभय फंदो रे, -491
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
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