SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ दोहा ॥ भव वन मर्दन कारणे, ज्ञान है हस्ति समान || उन्मार्गी मन हस्तीको, बशकर अंकुश जान ॥१॥ ॥ ढाळ बीजी ॥ (राग-दरबारी कानडो-ताल दादरो, ठुमक चलत रामचंद्र-ए चाल) पूजन करी ज्ञान पद, काटदो कुगतियां ।।अंचली ॥ मति श्रुत अवधि जान, मनः पर्यव केवल ज्ञान ।। नंदी-सूत्रे इनका ब्यान, बडी वहां जुगतियां ॥पूजन ॥१॥ मोह-तिमिर-तरणि ज्ञान, कर्म करि सिंहसमान ॥ होवे जीवादि तत्त्व मान, इससे हरे विपत्तियां ॥पूजन ॥२॥ अष्ट द्रव्य को मिलाय, ज्ञान पूजे ज्ञानी थाय ॥ ज्ञानावरणीय दूर जाय, प्रगटे घट सुमतियां ॥पूजन ॥३॥ धार धार ज्ञान धार, चेतन सब उपाधि टार ॥ मार मारेका विकार, करी विभु विनतियां ॥पूजन ॥४॥ विपय विष पीके अपार, लाख चोराशी वारवार ॥ फिरता रहा मार मार, ज्ञान बिन विमतियां ॥पूजन ॥५॥ आत्म कमले ज्ञान धार, अब जिया प्रमाद टार ॥ पा कर पिछे लब्धि सार, पाओगे मुगातियां ॥पूजन ॥६॥ काव्यम् : सर्वोत्तमध्येयं पप्रधानं, सुरासुरेन्द्रैः परिपूजितं यत् ॥ सेवस्व तत्ध्यानवतां हि गोचरं, गुणस्वरुपं शुभ-सिद्धचक्रम् ॥१॥ उपजाति वृत्तम् ॥ मंत्रः - ॐ हीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्मजरामृत्युनिवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलादिकं यजामहे स्वाहा चष्टम चारित्र पद पूजा दोहा।। कर्म चयो खाली करे, सेवो तेह चरित्त ॥ तीर्थपति पण सेवता, त्यागी अथाग स्ववित्त ॥१॥ ॥ ढाळ पहेली ॥ (राग सोरठ-कुबजा ने जादु डारा-ए चाल) सेवो चारित्रपद सुखदाई, विपदा सवि दूर पलाई ॥अंचली॥ -487
SR No.022757
Book TitleNavpad Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSohanlal Anandkumar Taleda
Publication Year2005
Total Pages654
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy